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________________ पौराणिक महाकाव्य केवली, विक्रिया ऋद्धिधारी न्यायवादी, श्रावक और श्राविका-परिवार, ७. आयु, शैशवावस्था, राज्यावस्था (यदि हो तो), छमस्थावस्था और केवली अवस्था का वर्णन ।' ग्रन्थ-कर्ता अपने समय के बहुत बड़े कवि थे। उनके अन्य ग्रन्थ हैं : पद्मानन्द, बालभारत आदि १३ ग्रन्थ । बालभारत के परिचय के साथ इस कवि का विशेष परिचय दिया गया है। ___महापुरुषचरित-इस रचना में पांच सर्ग हैं।' ऋषभ, शान्ति, नेमि, पार्श्व और वर्धमान इन पाँच तीर्थकरों का वर्णन है। इस पर एक टीका भी है, जो संभवतः स्वोपज्ञ है। उसमें उक्त कृति को काव्योपदेशशतक या धर्मोपदेशशतक भी कहा गया है। इसके रचयिता मेरुतुंग हैं। इनकी अन्य रचना प्रबंधचिन्तामणि ( सन् १३०६ ) है। कवि का विशेष परिचय प्रबंधचिन्तामणि के प्रसंग में दिया जायगा। लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित-यह ग्रन्थः हेमचन्द्राचार्य कृत त्रि० स० पु० च० के अनुकरण पर निर्मित हुआ है। इसमें भी १० पर्व हैं पर इसकी वर्णनशैली अलग दिखती है। इसमें किसी तीर्थकर के चरित्र में दिक्कुमारिकाओं का महोत्सव विस्तार से दिया गया है, तो किसी में दीक्षामहोत्सव, तो किसी में समवशरण की रचना अति विस्तार से वर्णित है। सर्वत्र इन्द्रों की स्तुति और तीर्थंकरों की देशना संक्षेप से दी गई है। अवान्तर कथाएँ भी संक्षिप्त रूप में दी गई हैं। __यद्यपि यह ग्रन्थ हेमचन्द्र के बृहत्काय ग्रन्थ के अनुकरण पर बनाया गया है फिर भी इसमें शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर के चरित्रों के १. गायकवाड़ मोरि० सिरीज सं० ५८, बड़ौदा, १९३२, परिशिष्ठ 'क'; जि. र० को०, पृ० २३४ में पद्मानन्दकाव्य के परिचय के साथ । २. जि० २० को, पृ० ३०५. ३. जि० र० को०, पृ० ३३५; इसका गुजराती अनुवाद पं० मफतलाक झवेरचन्द्रकृत छोटालाल मोहनलाल शाह, उनादा (उ० गुजरात) द्वारा वि० सं० २००५ में प्रकाशित हुभा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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