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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास चायक सामग्री नहीं दी है। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि वि० सं० ११९० में रचित 'आख्यानकमणिकोश' वृत्तिकार आम्रदेव और इस चरित के रचयिता एक ही हैं पर उक्त वृत्ति में अम्म और आम्रदेव के अभिन्न होने का कोई आधार नहीं मिलता है। इस ग्रंथ की अनुमानतः १६वीं शताब्दी की हस्तलिखित प्रति खम्भात के विनयनेमिसूरीश्वर-शास्त्रसंग्रह में उपलब्ध है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित-इस महाचरित में जैनों के कथानक, इतिहास, पौराणिक कथाएँ, सिद्धान्त एवं तत्त्वज्ञान का संग्रह है। यह सम्पूर्ण ग्रन्थ १० पर्यो में विभक्त है। प्रत्येक पर्व अनेकों सर्गों में विभक्त हैं। इस ग्रंथ की आकृति ३६००० श्लोकप्रमाण है। महासागर समान इस विशाल ग्रंथ की रचना हेमचन्द्राचार्य ने अपनी उत्तरावस्था में की थी। उनकी सुधावर्षिणी वाणी का गौरव और माधुर्य इस काव्य में स्वयं अनुभव किया जा सकता है। समकालीन सामानिक, धार्मिक और दार्शनिक प्रणालियों का प्रतिबिम्ब इस विशाल ग्रन्थ में अनेकों स्थलों में देख सकते हैं। इस प्रकार से इसमें गुजरात के उस समय का समाज और उसका मानस अच्छी तरह प्रतिबिम्बित हुआ है। इस दृष्टि से त्रि० श० पु० च० का महत्त्व हेमचन्द्राचार्य की कृतियों में विशिष्ट है। इनके 'द्वयाश्रय' में जितना वैविध्य दृष्टिगोचर होता है उसे अधिक इस ग्रंथ में होता है । तिरसठ-शलाका-पुरुषों का चरित १० पर्यों में इस प्रकार समाविष्ट है :१ पर्व में आदीश्वर प्रभु और भरतचक्री । २ पर्व में अजितनाथ तथा सगरचक्री । ३ पर्व में सम्भवनाथ से लेकर शीतलनाथ तक आठ तीर्थंकरों का चरित । १. प्राकृत टेक्स्ट सोसाइटी, वाराणसी से प्रकाशित भाख्यानकमणिकोश' की __ भूमिका, पृ० ४२. २. जेन भात्मानन्द सभा, भावनगर, १९०६-१३. ३. जिनमण्डन ने 'कुमारपालचरित' में इसको ३६००० श्लोकप्रमाण लिखा है, मुनि पुण्यविजय ३२००० श्लोकप्रमाण बतलाते हैं, प्रो० याकोबी ने ३७००० श्लोकप्रमाण बतलाया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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