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________________ पौराणिक महाकाव्य कर्ता एवं रचनाकाल-इस महत्त्वपूर्ण कृति के रचयिता भद्रेश्वरसूरि हैं। ये अभयदेवसूरि के गुरु थे। अभयदेव के शिष्य आषाढ का समय वि० सं० १२४८ है । अतः भद्रेश्वर का समय १२वीं शताब्दी के मध्य के आसपास मान सकते हैं। परन्तु इस ग्रन्थ की भाषा चूर्णियों की भाषा के बहुत समीप है। सम्पादक ने दिखाने का प्रयास किया है कि कहावलि ग्रन्थ १२वीं शताब्दी से बहुत पहले का है। उक्त ग्रन्थ के स्थविरावली के अंश में निम्न अवतरण 'जो उण मल्लवाई व पुव्वगयावगही खमापहाणो समणो सो खमा समणो नाम जहा आसो इह संपयं देवलाय (देवलोयं) गओ जिणभदि (६) गणि खमासमणो त्ति रयि याइं च तेण विसेसावस्सय विसेसणवई सत्थाणि जेसु केवल नाणदस्सणवियारावसरे पयडियाभिप्पाओ सिद्धसेन दिवायरो।' से ज्ञात होता है कि जिनभद्र क्षमाश्रमण संपयं ( इसी समय ) देवलोक को गये हैं। इससे कहावलि को जिनभद्र से एकदम छः शताब्दी पीछे नहीं रखा जा सकता। जिनभद्र के बहुत ख्यातिप्राप्त होने से उनके लिये साम्प्रत शब्द दो शताब्दी पूर्व तक के लिये लग सकता है। इसलिए कहावलि को आठवीं के बाद की रचना कहना उचित न होगा।' चउप्पन्नमहापुरिसचरिय-यह प्राकृत भाषानिबद्ध ग्रंथ १०३ अधिकारों में विभक्त है। इसका मुख्य छन्द गाथा है। इसका श्लोक-परिमाण १००५० है जिसमें ८७३५ गाथाएँ और १०० इतर वृत्त हैं। यह ग्रंथ अब तक अप्रकाशित है। इसमें भी चौवन महापुरुषों के चरित्र का वर्णन है। ग्रंथ-समाप्ति पर उपसंहार में कहा गया है कि ५४ में ९ प्रतिवासुदेवों को जोड़ने से तिरसठ शलाकापुरुष बनते हैं। इसमें तीर्थंकरों के यक्ष-यक्षिणियों का उल्लेख है जो प्राचीनतम ग्रंथों में नहीं मिलता अतः सम्भावना की जा सकती है कि यह ग्रंथ शीलांक के चउप्पन्नम० के बाद रचा गया होगा। रचयिता और रचनाकाल-इसके रचयिता आम्र कवि हैं। ग्रंथ के प्रारम्भ और अन्त में ग्रंथकार ने अपने लिए अम्म शब्द के अतिरिक्त कोई विशेष परि १. जैन सत्यप्रकाश, भाग १७, सं० ४, जनवरी १९५९ में उ० प्र० शाह का लेख, आल इण्डिया ओरि० का० वर्ष २० भाग २ के पृ० १४७ में भी सम्पादक का उक्त अभिप्राय अंकित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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