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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास देशीनाममाला में हेमचन्द्र द्वारा प्रयुक्त कुछ उद्धरणों से प्रतीत होता है कि शीलांक रचित कोई 'देशी नाममाला' या 'देशी शब्दकोश' की टीका रही होगी । वैसे शीलांक नाम के अन्य भी आचार्य हो गये हैं पर उनकी आगमविषयक ही रचनाएँ हैं । बृहट्टिप्पनिका में 'चउप्पन्न महापुरिसचरियं' का रचना- समय वि० सं० ९२५ दिया है । ये शीलाचार्य अपने समकालीन शीलाचार्य अपरनाम तत्वादित्य से भिन्न हैं । तत्त्वादित्य ने आचारांग तथा सूत्रकृतांग पर वृत्ति लिखी थी । ७० 1 गया है । यह कृति कहावलि —— इस ग्रन्थ' में तिरसठ महापुरुषों का चरित्र वर्णित है। इसकी रचना प्राकृत गद्य में की गई है पर यत्र-तत्र पद्य भी पाये जाते हैं । ग्रन्थ में किसी प्रकार के अध्यायों का विभाग नहीं । कथाओं के आरम्भ में 'रामकहा भण्ण', 'वाणरका भण्णई' आदि रूप से निर्देश मात्र कर दिया पश्चात् कालीन त्रिषष्टिशलाकापुरुष महाचरित ( हेमचन्द्र ) आदि रचनाओं का आधार है । इसके ऐतिहासिक भाग 'थेरावलीचरियं' की सामग्री का हेमचन्द्र ने 'परिशिष्ट पर्व' अपरनाम ' स्थविरावलीचरित' में उपयोग किया है। इसमें रामायण की कथा विमलसूरिकृत 'पउमचरियं' का अनुसरण करती है पर यहाँवहाँ कुछ फेरफार किया गया है, जैसे सीता के गृह निर्वास प्रसंग में कहा गया है कि जब सीता गर्भवती हुई तो उसे स्वप्न में दिखा कि उसके दो पराक्रमी पुत्र होंगे । स्वप्न की यह बात सपत्नियों के लिये ईर्ष्या का विषय हा गई और उन्होंने छल से राम के आगे उसे बदनाम करना चाहा। उन्होंने सीता से रावण का चित्र बनाने का आग्रह किया । सीता ने यह कहते हुए कि उसने रावण के मुखादि अंग तो देखे नहीं, केवल उसके पैरों का चित्र बना दिया। इसपर सपत्नियों ने लांछन लगाया कि वह रावण पर अनुरक्त है और उसीके चरणों का वन्दन करती है। राम ने यद्यपि इसपर तत्काल कोई ध्यान नहीं दिया पर सपत्नियों ने जनता में जब अपवाद फैलाना शुरू किया तो राम को विवश होकर उसे निर्वासित करना पड़ा । रावण के चित्र की घटना हेमचन्द्र ने अपने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में भी दी है। १. इसका सम्पादन उ० प्र० शाह गाय० भोरि० सि० बड़ौदा के लिए कर रहे हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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