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________________ ६८ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास महापुरुषों के समुदित चरित्र को प्राकृत भाषा में वर्णन करनेवाले उपलब्ध ग्रन्थों में इस ग्रन्थ का सर्वप्रथम स्थान है। संस्कृत-प्राकृत भाषाओं में एककर्तृक की दृष्टि से भी यह ग्रन्थ सर्वप्रधान है। संस्कृत में इसके पूर्व 'महापुराण' मिलता है पर वह भी एककर्तृक नहीं है। इसकी पूर्ति जिनसेन के शिष्य गुणभद्राचार्य ने की थी। इस ग्रन्थ का श्लोकपरिमाण १०८०० है। यह एक गद्य-पद्यमिश्रित रचना है । प्रारंभ में ऋषभदेव चरित के मध्य एक 'विबुधानन्दनाटक' (संस्कृतप्राकृतमिश्रित ) दिया गया है और यत्र-तत्र अपभ्रंश के सुभाषित भी दिये गये हैं। देशी शब्दों का भी प्रयोग उचित मात्रा में हुआ है। लेखक ने कथावस्तु के पूर्व स्रोतों के रूप में आचार्यपरम्परा द्वारा प्राप्त प्रथमानुयोग का निर्देश किया है पर उनके समक्ष शायद ही प्रथमानुयोग रहा हो । ग्रन्थकार ने पूर्ववर्ती रचनाओं से कथावस्तु ग्रहण की है परन्तु उसमें भी कई बातों में भिन्नता प्रतीत होती है। उदाहरण के लिए रामकथा को ही लें। अधिकांश वर्णन तो विमलसूरि रचित पउमचरियं के समान है पर कुछ बातों में भेद है यथा-रावण की बहिन को पउयचरियं में चन्द्रनखा कहा है तो यहाँ उसका नाम सूपनखा, पउमचरियं में रावण लक्ष्मण के स्वर में सिंहनाद करके राम को धोखा देता है किन्तु यहाँ सुवर्णमय मायामृग का प्रयोगकर, यहां राम के हाथ से बालि का वध बताया गया है जबकि पउमचरियं में दीक्षा लेना । इन बातों से लगता है कि इस रचना पर वाल्मीकि रामायण का अधिक प्रभाव है। वैसे ग्रन्थ के अन्त में शीलांक ने स्पष्टतः कहा है कि राम-लक्ष्मण का चरित्र पउमचरियं में विस्तार से वर्णित है। इस ग्रन्थ के ४० चरित्रों में २१ चरित तो कथाओं के अति संश्चित नोट जैसे लगते हैं। कई तो ५-७ पंक्तियों में या आधे-पौन पृष्ठ में और अधिक से अधिक एक या सवा पृष्ठ में समाप्त किये गये हैं। केवल १९ चरित्र अनेकों विशेषताओं के कारण विस्तृत हुए हैं-जैसे महापुरुष के क्रम से १.२. ऋषभभरत चरित, ३०-३१. शान्तिनाथ चरित (तीर्थ० चक्र०), ४१. मल्लिस्वामि और ५३. पावस्वामिचरित-इन चार चरित्रों में कथानायक के पूर्वभवों का विस्तार से वर्णन है। ७. सुमति स्वामिचरित पूर्व भव की कथा तथा शुभाशुभ कर्म विपाक के लम्बे उपदेश के कारण विस्तार से वर्णित है । ४. सगरचरित, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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