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पौराणिक महाकाव्य
बादशाह अकबर के दरबार में ३३ हिन्दू सभासदों के पाँच विभागों में से उनका नाम प्रथम विभाग में था। उनने अकबर के दरबार में एक महापण्डित को बाद-विवाद में परास्त भी किया था और सम्मानित हुए थे। जोधपुर के हिन्दू नरेश मालदेव ने भी इनका सम्मान किया था। 'अकबरशाहि-शृंगारदर्पण' की प्रशस्ति से मालूम होता है कि पद्मसुन्दर के दादागुरु आनन्दमेरु का अकबर के पिता हुमायू और पितामह बाबर के दरबार में बड़ा सम्मान था।
पद्मसुन्दर बड़े ही उदारबुद्धि थे। उन्होंने दिगम्बर सम्प्रदाय के रायमल्ल के अनुरोध पर उक्त ग्रन्थ की ही नहीं बल्कि पार्श्वनाथकाव्य की भी रचना की है। उक्त दोनों ग्रन्थों की प्रशस्तियों में रायमल्ल के वंश का परिचय तथा काष्ठासंघ के आचार्यों की गुरु-परम्परा दी गई है ।
पद्मसुन्दर ने कई ग्रन्थ लिखे थे : भविष्यदत्तचरित, रायमल्लाभ्युदय, पार्श्वनाथकाव्य, प्रमाणसुन्दर, सुन्दर प्रकाश शब्दार्णव ( कोष), शृंगारदपण, जम्बूचरित (प्राकृत), हायनसुन्दर (ज्योतिष) और कई लघु कृतियों। ये समस्त रचनाएँ उन्होंने वि० सं० १६२६ और १६३९ के बीच रची थीं। उनका स्वर्गवास वि० सं० १६३९ में हुआ था।'
चउप्पन्नमहापुरिसचरिय-इस चरित' में केवल ५४ महापुरुषों का वर्णन किया गया है। जैन साहित्य में महापुरुषों के सम्बंध में दो मान्यताएँ हैं। समवायांग सूत्र के २४६ से २७५ वे सूत्र तक ६३ शलाकापुरुषों के नाम दिये गये हैं पर ९ प्रतिवासुदेवों को छोड़ शेष ५४ को ही सूत्र सं० १३२ में 'उत्तमपुरुष' कहा गया है । इस चरित में भी ९ प्रतिवासुदेवों को छोड़कर शेष ५४ को ही 'उत्तमपुरुष' कहा गया है। पर चरित्र प्रतिपादन की दृष्टि से देखा जाय तो इसमें ५१ महापुरुषों का ही वर्णन है क्योंकि शान्ति, कुन्थु और अरनाथ ये तीन नाम तीर्थकर और चक्रवर्तियों-दोनों में सामान्य हैं। इतना ही नहीं, विषय-सूची देखने से ज्ञात होता है कि वास्तविक चरित ४० ही रह जाते हैं क्योंकि पितापुत्र, अग्रज-अनुज के सम्बंध से कुछ चरित साथ-साथ दिये गये हैं इसलिए विशिष्ट चरितों की संख्या ४० शेष रह जाती है। १. अनेकान्त, वर्ष ४ अं० ८, अगरचन्द्र नाहटा-'उपाध्याय पद्मसुन्दर और
उनके ग्रन्थ' तथा वही, वर्ष १० अं० १ 'कवि पद्मसुन्दर और श्रावक
रायमल्ल'; नाथूराम प्रेमी-जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३९५.४०३. २. प्राकृत टेक्स्ट सोसाइटी, वाराणसी, सन् १९६१.
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