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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास १. भरतेश्वराभ्युदय काव्य स्वोपज्ञटीका सहित, २. राजीमतीविप्रलम्भ तथा ३. त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र हैं। शेष श्रावक-मुनि आचार, स्तोत्र, पूजा, विधान तथा टीकाएँ हैं।
इनके ग्रन्थों की प्रशस्तियाँ परमारवंशी राजाओं के इतिहास-काल जानने के लिए बड़ी उपयोगी हैं।
इस ग्रन्थ के अन्त में जो प्रशस्ति दी गई है उससे ज्ञात होता है कि इसकी रचना परमारनरेश जैतुगिदेव के राज्यकाल में विक्रम सं० १२९२ में नलकच्छपुर के नेमिनाथ मन्दिर में हुई थी।
आदिपुराण-उत्तरपुराण-आदिपुराण को 'ऋषभदेवचरित' तथा 'ऋषभनाथचरित' नाम से भी कहा जाता है। इसमें बीस सर्ग हैं। उत्तरपुराण का विशेष विवरण नहीं मिल सका है।
रचयिता एवं रचनाकाल-इन दोनों कृतियों के लेखक भट्टारक सकलकीर्ति हैं। इनका परिचय इनकी अन्यतम कृति हरिवंशपुराण के प्रसंग में दिया गया है।
तिरसठ महापुरुषों के चरित से संबंधित केशवसेन (सं० १६८८) और प्रभाचन्द्र के कर्णामृतपुराण भी उल्लेखनीय हैं।
रायमल्लाभ्युदय-इसमें चौबीस तीर्थकरों का चरित्र महापुराण के अनुसार दिया गया है। यह अबतक अप्रकाशित है तथा हस्तलिखित प्रति के रूप में खंभात के कल्याणचन्द्र जैन पुस्तक भण्डार में है। पत्र संख्या १०५ है। यह ग्रन्थ अकबर के दरबारी सेठ चौधरी रायमल्ल ( अग्रवाल दिग०) की अभ्यर्थना और प्रेरणा से रचा गया था, इसलिये इसका नाम 'रायमल्लाभ्युदय' रखा गया।
रचयिता और रचनाकाल-इसके रचयिता उपाध्याय पद्मसुन्दर हैं जोकि नागौर तपागच्छ के बहुत बड़े विद्वान् थे। उनके गुरु का नाम पद्ममेरु और प्रगुरु का आनन्दमेरु था। पद्मसुन्दर अपने युग के प्रभावक आचार्य थे ।
१. विशेष परिचय के लिए देखें-जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३४३-३५८. २. जि० २० को०, पृ० २८. . ३. वही, पृ० ४२. ४. वही, पृ० ६८. ५. इसका परिचय प्रो० पीटर पिटर्सन ने जर्नल आफ रायल एशियाटिक सोसा
इटी, बम्बई ब्रांच (एक्स्ट्रा नं० सं० १८८७ ) में विस्तार से दिया है।
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