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पौराणिक महाकाव्य
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महापुराण-इसके अपर नाम 'त्रिषष्टिमहापुराण' या 'त्रिषष्टिशलाकापुराण' हैं। इसका परिमाण दो हजार श्लोकों का है जिसमें तिरसठ शलाका पुरुषों की संक्षिप्त कथा है । रचना सुन्दर और प्रसाद गुण युक्त है।
रचयिता और रचनाकाल-इसके रचयिता मुनि मल्लिषेण हैं। महापुराण में रचना का समय शक सं० ९६९ (वि० सं० ११०४) ज्येष्ठ सुदी ५ दिया गया है। इसलिए मल्लिषेण विक्रम की ११वीं के अन्त और १२वीं सदी के प्रारंभ के विद्वान् हैं। मल्लिषेण की गुरुपरम्परा इस प्रकार है : अजितसेन (गंगनरेश रायमल्ल और सेनापति चामुण्डराय के गुरु ) के शिष्य कनकसेन, कनकसेन के जिनसेन और उनके शिष्य मलिषेण । ये एक बड़े मठपति थे और कवि होने के साथ-साथ बड़े मंत्रवादी थे। धारवाड़ जिले के मुलगुन्द में इनका मठ था वहीं उक्त महापुराण लिखा गया था। इनकी अन्य कृतियों में नागकुमारकाव्य, भैरवपद्मावती-कल्प, सरस्वतीमंत्रकल्प, ज्वालिनीकल्प और कामचाण्डालीकल्प मिलते हैं।
त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र-इसमें ६३ शलाका महापुरुषों के जीवनचरित अतिसंक्षिप्त रूप में दिये गये हैं। यह भगवज्जिनसेन और गुणभद्र के महापुराण का सार है । यह ग्रन्थ खांडिल्यवंशी जाजाक नामक पण्डित की प्रार्थना और प्रेरणा से नित्य स्वाध्याय करने के लिए रचा गया था। इसके पढ़ने से महापुराण का सारा कथा भाग स्मृति गोचर हो जाता है। ग्रन्थकार ने टिप्पणी रूप में इसपर स्वोपज्ञ 'पंजिका' टीका लिखी है। सम्पूर्ण रचना को २४ अध्यायों में विभक्त किया गया है और इस ग्रन्थ का प्रमाण ४८० श्लोक है। समस्त ग्रन्थ की रचना सुललित अनुष्टुप छन्दों में की गई है।
ग्रन्थकर्ता और रचनाकाल-इसके रचयिता प्रसिद्ध पं० आशाधर हैं। ये वधेरवाल जाति के जैन थे तथा प्रसिद्ध धारा नगरी के समीप नलकच्छपुर (नालछा) के निवासी थे। इन्होंने लगभग १९ ग्रन्थों की रचना की है उनमें कई प्राप्त हैं और प्रकाशित हैं और कई अब तक अनुपलब्ध हैं। काव्यग्रन्थों में इनके
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१. जि० २० कोश, पृ० १६३ और ३०५, जैन० सा. और इतिहास, पृ.
३१४-३.९. २. माणिक्यचन्द्र दि० जै० प्र० मा० बम्बई, १९३०; जिनरत्नकोश, पृ० १६५.
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