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पौराणिक महाकाव्य
इन ग्रन्थों के पीछे प्रशस्ति दी गई है जिससे मालूम होता है कि ये सब ग्रन्थ प्रसिद्ध परमार नरेश भोजदेव के समय में धारा में रहकर लिखे गये थे ।
पुराणसारसंग्रह' - प्रस्तुत ग्रन्थ में आदिनाथ, चन्द्रप्रभ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर के चरित्र संकलित हैं । आदिनाथ चरित्र में ५ सर्ग, चन्द्रप्रभ में १ सर्ग, शान्तिनाथ चरित्र में ६ सर्ग, नेमिनाथ चरित्र में ५ सर्ग, पार्श्वनाथ चरित्र में ५ सर्ग, महावीर चरित्र में ५ सर्ग - इस तरह इसमें २७ सर्ग हैं । इनमें से केवल दस सर्गों के अन्तिम पुष्पिका वाक्यों में ग्रन्थ का नाम पुराणसार संग्रह दिया गया है, बारह में पुराणसंग्रह, दो में महापुराणे - पुराणसंग्रहे, एक मैं महापुराण संग्रह और एक में केवल महापुराण और तीन में केवल अर्थाख्यानसंग्रह सूचित किया गया है ।
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इसके रचयिता दामनन्दि की अनेक कृतियों में चतुर्विंशतितीर्थकर पुराण नाम से एक कृति श्रवण बेलगोला के भट्टारक के निजी भण्डार में है ।' लुइस राइस ने अपनी मैसूर और कुर्ग की हस्तलिखित ग्रन्थ-सूची में प्रस्तुत रचना और उक्त पुराण दोनों रचनाओं को अभिन्न सूचित किया है । प्रस्तुत ग्रन्थ के उक्त पुष्पिका वाक्यों से प्रतीत होता है कि लेखक ने भिन्न-भिन्न समयों में शनैः-शनैः चोबीसों तीर्थंकरों के चरित्र-निबद्ध किये। उनकी रचना के समय ग्रन्थकार ने पूरे ग्रन्थ का कोई एक नाम निश्चित नहीं किया था, इसलिये किसी सर्ग के अन्त में कोई नाम दिया और किसी में कोई । इसलिये प्रतीत होता है कि ग्रन्थ पूर्ण होने पर पूरे ग्रन्थ का नाम चतुर्विंशतितीर्थंकरपुराण या महापुराण प्रसिद्ध हुआ होगा और सर्गान्त वाक्यों के आधार पर वह अर्थाख्यानसंग्रह, अर्थाख्यानसंयुत, पुराणसारसंग्रह, या पुराण-संग्रह भी कहलाता रहा। किसी कारणवश उक्त पूरे ग्रन्थ में से उक्त चरित्र निकाल कर उनका पृथक् संकलन भी प्रचार में आ गया होगा और उसकी प्रसिद्धि 'पुराणसंग्रह' नाम से ही प्रायः हुई होगी।
रचयिता एवं रचनाकाल - इस ग्रन्थ के रचयिता दामनन्दि आचार्य हैं, ऐसा अनेक सर्गों के अन्त में दिये गये पुष्पिका वाक्यों से ज्ञात होता है । साहित्य और
१. भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी से १९५४ में दो भागों में प्रकाशित (सं० और अनु० डा० गुलाबचन्द्र चौधरी ) ।
२. जि० २० को०, पृ० २५२.
३. जि० २० को ०, पृ० ११६.
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