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________________ पौराणिक महाकाव्य ६१ बन पड़े हैं। अवान्तर कथानकों में राजा वसु और पर्वत आख्यान, अभयकुमार का चरित्र तथा जीवन्धरचरित्र बड़े ही मनोहर हैं। उत्तरपुराण के ६७ और ६८ वे पर्यों में रामकथा दी गई है जो पउमचरिय (प्रा.) और पद्मचरित्र (सं.) में वर्णित कथा से अनेक बातों में भिन्न है। इस पुराण में राजा दशरथ, वाराणसी के राजा थे। राम की माता का नाम सुबाला और लक्ष्मण की माता का नाम कैकयी था। सीता मन्दोदरी के गर्भ से उत्पन्न बतायी गई है जिसे रावण ने अनिष्टकारिणी जानकर पेटी में रखकर मिथिला में जमीन के अन्दर गड़वा दिया था और वहां से वह राजा जनक को प्राप्त हुई थी। दशरथ पीछे अपनी राजधानी अयोध्या ले गये थे और वहां से राम ने दशरथ का निमंत्रण पा सीता से विवाह किया था। राम के बनवास का वहां कोई उल्लेख नहीं है। राम सीता सहित अपने पूर्वजों की भूमि देखने बनारस गये और वहां के चित्रकूट वन से रावण ने सीता का अपहरण किया था। यहाँ सीता के आठ पुत्रों का उल्लेख है किन्तु लव-कुश का नहीं, लक्ष्मण की मृत्यु एक असाध्य रोग के कारण हुई, राम ने लक्ष्मण के पुत्र को राजा बनाया तथा अपने पुत्र को युवराज बनाकर दीक्षा लेली, आदि । यह कथा पालि 'दशरथजातक' तथा अद्भुत रामायण के कुछ अनुरूप लगती है, पर इसकी अन्य विशेष बातों का पता लगाना कठिन है। इसी तरह ७१वे पर्व में बलराम, श्रीकृष्ण, उनकी आठ रानियों तथा प्रद्युम्न आदि के भवान्तर दिये गये हैं। इसमें जिनसेन (द्वि०) के हरिवंशपुराण में दिये गये कई स्थानों के नामों तथा कथानक आदि में भेद पाया जाता है । इस उत्तरपुराण में ४८-७६ तक २९ पर्व हैं। अति विस्तार के भय से, थोड़े में ही कथाएँ समाप्त करना सोचकर कवि ने अपने कवित्व का प्रदर्शन नहीं किया है और केवल पौने आठ हजार श्लोकों में कथाभाग को पूरा किया है। फिर भी बीच-बीच में कितने ही सुभाषित आ गये। इसके प्रतिपर्व की रचना अनुष्टुभ् छन्द में हुई है और सर्गान्त में छन्द बदल दिये गये हैं। इसमें सब मिलाकर १६ प्रकार के छन्दों का प्रयोग हुआ है। अनुष्टुभ मान से इसका ग्रन्थप्रमाण ७७७८ श्लोक है। रचयिता और रचनाकाल-ग्रन्थ के अन्त में ४३ पद्यों की विविध छन्दों में निर्मित एक प्रशस्ति दी गई है जिसके दो भाग हैं । प्रथम भाग १-२७ तक के लेखक गुणभद्र हैं तथा दूसरे भाग के लेखक उनके शिष्य लोकसेन । प्रथम भाग में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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