________________
पौराणिक महाकाव्य
५७
पुरुषों के चरित का वर्णन रहता है वह 'महापुराण' कहलाता है। जो पुराण का अर्थ है वही धर्म है-स च धर्मः पुराणार्थः । अर्थात् पुराण में धर्मकथा का प्ररूपण होना चाहिये। महाकाव्य की व्याख्या करते हुए जिनसेन कहता है कि जो प्राचीनकाल के इतिहास से सम्बन्ध रखनेवाला हो, जिसमें तीर्थकर, चक्रवर्ती आदि महापुरुषों का चरित्र चित्रण हो तथा जो धर्म, अर्थ और काम के फल को दिखाने वाला हो उसे 'महाकाव्य" कहते हैं। इस तरह परिमार्जित परिभाषा द्वारा पुराण और महाकाव्य के बीच समन्वय स्थापित किया गया है।
आदिपुराण के विस्तृत कलेवर में हम पुराण, महाकाव्य, धर्मकथा, धर्मशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, आचारशास्त्र और युग की आदि व्यवस्था को सूचित करने वाले एक बृहत् इतिहास के दर्शन करते हैं। यह आदिपुराण दिग० जैनों का एक ऐसा विश्वकोश है तथा एक प्रकार से वह सब कुछ है जो कि उन्हें जानना चाहिये । इसमें अनेक प्रकार के भौगोलिक नाम, बहुरंगी समाज-रचना, सांस्कृतिक जीवन के चित्र, नाना गोष्ठियों, नाना प्रकार की कलाएँ, आर्थिक एवं राजनीतिक सिद्धान्त, दार्शनिक तथा धार्मिक बातों की विस्तार के साथ सूचना मिलती है। इस पौराणिक महाकाव्य में ही सर्व प्रथम गर्भादि १६ संस्कारों का उल्लेख किया गया है। संभवतः ब्राह्मण सम्प्रदाय के अनुकरण पर उन्होंने अपने मत के अनुयायियों के लिए यह विकल्परूप रखा है।
साहित्यिक गुणों की दृष्टि से इसके अनेक खण्ड' संस्कृत काव्य के सुन्दर उदाहरण है। महाकाव्य के नायक रूप में ऋषभदेव के अतिरिक्त भरत, बाहुबलि . आदि अनेक पात्र हैं जिनमें से अनेकों चरित्रों का अच्छा विकास हुआ है । पूर्वभवों के निमित्त से अनेक अवान्तर कथाएँ दी गई हैं जिनमें कई पात्रों के चरित्रों का अच्छा विश्लेषण किया गया है। प्रकृति-चित्रण इस काव्य में पृष्ठभूमि के रूप में प्रचुर मात्रा में किया गया है। कहीं लताओं का वर्णन है तो कहीं सरिताओं और पर्वत-मालाओं का । षड्ऋतु' वर्णन, चन्द्रोदय, सूर्योदय, जलविहार आदि प्रसंगों में प्रकृतिचित्रण बड़े स्वाभाविक रूप में हुआ है। सौन्दर्यचित्रण में कवि ने शास्त्रीय पद्धति अपनायी है और मरुदेवी तथा श्रीमती आदि का नख से लेकर शिखा तक वर्णन किया है।'
१. वही, १.९९. २. वही, ९.११, १२, १७, २६.१४८. ३. वही, ३. १. वही, ६.६९,७०, ७५.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org