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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पाण्डवपुराण-यह जिनसेन, सकलकीर्ति और अन्य ग्रन्थकर्ताओं के ग्रन्थों के आधारों से रचित सरल संस्कृत पद्यात्मक कृति है।
रचयिता एवं रचनाकाल-इसके रचयिता काष्ठासंघीय नन्दीतट गच्छ के भट्टारक श्रीभूषण हैं। इनके बनाये हुए शान्तिनाथपुराण, पाण्डवपुराण और हरिवंशपुराण उपलब्ध हैं। सभी ग्रन्थों की प्रशस्तियों में रचना संवत् दिया हुआ है। इसकी रचना का समय वि० सं० १६५७ पौष शुक्ल तृतीया रविवार दिया गया है। ये एक भट्टारक थे और सोजित्रा (गुजरात) की गद्दी पर आसीन थे। प्रशस्ति में गुरुपरम्परा भी दी गई है। प्रस्तुत पुराण की रचना सौर्यपुर अर्थात् सूरत में की गई थी।
पाण्डवचरित्र-यह काव्य ग्रन्थ' देवप्रभसूरि कृत पाण्डवचरित्र का सरल संस्कृत में गद्यात्मक रूपान्तर है। इसमें यत्र-तत्र देवप्रभ की रचना से तथा अन्यत्र से कतिपय पद्य भी उद्धृत किये गये हैं। इसमें भी १८ सर्ग हैं।
ग्रन्थकार और रचनाकाल-लेखक ने ग्रन्थ के अन्त में एक संक्षिप्त प्रशस्ति में अपने वंश और गुर्वादि का परिचय दिया है। जिससे ज्ञात होता है कि इसके रचयिता देवविजय गणि हैं जो तपागच्छ के विजयदानसूरि के शिष्य रामविजय के शिष्य थे। इन्होंने अहमदाबाद में रहकर यह ग्रन्थ सं० १६६० में लिखा था । इसका संशोधन शान्तिचन्द्र के शिष्य रत्नचन्द्र ने किया था ।
हरिवंशपुराण-इसकी रचना का आधार जिनसेन, सकलकीर्ति आदि द्वारा रचित हरिवंशपुराण है।
इसे सोजित्रा के भट्टारक श्रीभूषण ने सं० १६७५ चैत्र सुदी १३ के दिन पूर्ण किया था।
पाण्डवचरित्र-शुभवर्धनगणिकृत इस ग्रंथ को हरिवंशपुराण भी कहते हैं।
यह ग्रन्थ सत्यविजय ग्रन्थमाला अहमदाबाद से बालाभाई मूलचन्द्र ने प्रकाशित किया है।
१, परमानन्द शास्त्री, प्रशस्ति-संग्रह, पृ. ९६; जैन साहित्य और इतिहास
(प्रेमी), पृ० ३८९; जि. र० को०, पृ० २४३. २. यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, सं० २६, वाराणसी, वी० सं० २४३८. ३. राजस्थान के शास्त्रभण्डारों की सूची, द्वि० भा०, पृ० २१८, परमानन्द
शास्त्री, प्रशस्तिसंग्रह, पृ० ४९. ४. जि. र० को०, पृ. २४२.
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