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पौराणिक महाकाव्य
रचनाकाल प्रतीत होता है । पाण्डवचरित के सम्पादकों ने इसका रचनाकाल वि० सं० १२७० माना है' जो कि उक्त अनुमानों के आस-पास ही बैठता है ।
हरिवंशपुराण -- जिनसेन के हरिवंश पुराण के आधार पर रचित इस कृति में ४० सर्ग हैं। इसमें हरिवंशकुलोत्पन्न २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ और श्री कृष्ण तथा उनके समकालीन पाण्डव और कौरवों का वर्णन है । इसके प्रथम १४ सर्गों की रचना भट्टारक सकलकीर्ति और शेष सर्गों की रचना उनके शिष्य ब्रह्म जिनदास ने की है । इसमें रविषेण और जिनसेन का उल्लेख है ।
रचयिता और रचनाकाल - इस ग्रन्थ के प्रथमांश के रचयिता भट्टारक कलकीर्ति हैं । मध्यकालीन उत्तर भारत में सकलकीर्ति नाम के अनेक भट्टारक हो गये हैं किन्तु उनमें से सर्वप्रथमज्ञात सकलकीर्ति ने अनेक शासन प्रभावक कार्य किये थे और विपुल साहित्य प्रणयन किया था । इनकी कृतियाँ संस्कृत और राजस्थानी दोनों भाषाओं में प्राप्त हैं ।
इनके समय के सम्बन्ध में विवाद है । डा० कस्तूरचन्द्र कासलीवाल इनका जन्म वि० सं० १४४३ और स्वर्गवास १४९९ मानते हैं, जब कि डा० ज्योतिप्रसाद जैन ने जन्म १४१८ और स्वर्गवास १४९९ माना है । इन दोनों के मत से डा० मो० विन्टरनित्स द्वारा निर्धारित स्वर्गवास का समय ( सं० १५२१ ) ठीक नहीं है और न डा० जोहरापुरकर द्वारा निर्धारित काल सं० १४५० - १५१० ये डूंगरपुर (ईडर ) पट्ट के संस्थापक तथा बागड ( सागवाड़ा ) बड़साजन पट्ट के भी संस्थापक थे । इन्होंने ३४ के लगभग ग्रन्थ लिखे हैं जिनमें २८ तो संस्कृत में और ६ राजस्थानी में ।
संस्कृत भाषा के ग्रन्थ : १. मूलाचारप्रदीप, २. प्रश्नोत्तरोपासकाचार, ३. आदिपुराण, ४. उत्तरपुराण, ५. शान्तिनाथचरित्र, ६. वर्धमान चरित्र, ७. मल्लिनाथचरित्र, ८. यशोधरचरित्र, ९. धन्यकुमारचरित्र, १०.
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१. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास ( मो० द० देसाई ) में पाण्डवचरित का रचनाकाल सं० १२७० के लगभग माना गया है ।
राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व,
२.
जि० २० को०, पृ० ४६०;
पृ० २७.
३. राजस्थान के जैन सन्त: व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ० १-२१, शोधांक १६, पृ० १८१-१८८ तथा २०८-२०९.
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जैन सन्देश,
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