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________________ पौराणिक महाकाव्य विषय पर भले ही कुछ प्रकाश पड़ सके और उसमें भगवान् महावीर के विवाह के उल्लेख की संगति बैठ सके । पाण्डवचरित- यह एक सर्गचद्ध कृति है। इसमें १८ सर्ग हैं। इसका कथानक लोकप्रसिद्ध पाण्डवों के चरित्र पर आधारित है जोकि जैन-परम्परा के अनुसार वर्णित है, साथ में नेमिनाथ का चरित भी स्वतः आ गया है। इसके नायक पाँच पाण्डव धीरोदात्त एवं उदात्त क्षत्रिय-कुल सम्भूत हैं। यह वीररस प्रधान काव्य है किन्तु इसका पर्यवसान शान्तरस में हुआ है। शृंगार, अद्भुत एवं रौद्र रसों की योजना भी इसमें अंगरूप हुई है। इसमें काव्य-परम्परा के अनुकूल प्रत्येक सर्ग में एक छन्द का प्रयोग तथा सर्गान्त में छन्द परिवर्तन किया गया है। इसमें महाकाव्यीय वर्ण्य विषयों-नगरी, पर्वत, वन, उपवन, बसन्त, ग्रीष्म आदि का समावेश यथास्थान हुआ है । इसके सर्गों के नामकरण भी वर्ण्यविषय के आधार पर किये गये हैं। यद्यपि इसमें महाकाव्योचित सभी गुण हैं परन्तु भाषा-शैलीगत प्रौढ़ता और उदात्त कवित्व कला के अभाव में यह सामान्य पौराणिक काव्य रह गया है। पौराणिक काव्यों के समान इसमें अनेक बातें कल्पनापूर्ण एवं अतिशयोक्ति से भरी हैं। वर्णन में अनेक अलौकिक और अप्राकृतिक शक्तियों का आश्रय लिया गया है। यत्र तत्र अवान्तर कथाओं की योजना भी की गई है जैसे नलकूबर की कथा। भवान्तरों के कथन में भी अनेक अवान्तर कथाएँ आ गई हैं। पाण्डवचरित के . कथानक का आधार 'षष्ठांगोपनिषद्' तथा हेमचन्द्राचार्य का 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' तथा कुछ अन्य ग्रन्थ हैं। इस बात को ग्रन्थकर्ता ने स्वयं इन शब्दों में प्रकट किया है। षष्ठांगोपनिषत्रिषष्टिचरितानालोक्य कौतूहला देतत् कन्दलयांचकार चरितं पाण्डोः सुतानामहम् ।। पाण्डवचरित का ग्रन्थ-प्रमाण लगभग आठ हजार श्लोक है । इसके सभी सर्गों में अनुष्टुभ् छन्द का प्रयोग हुआ है। सर्गान्तों में प्रयुक्त अन्य छन्दों की संख्या ४० है। उनमें प्रमुख वसन्ततिलका, शिखरिणी, शार्दूल विक्रीडित, मालिनी प्रमुख हैं। ग्रन्थकार ने भाषा की प्रौढ़ता के अभाव को अलंकारों के प्रयोग द्वारा कुछ, अंशों में दूर करने का प्रयत्न किया है। शन्दालंकारों में १. कान्यमाला सिरीज, बम्बई, १९११; जि० र० को०, पृष्ठ २४२. २. पाण्डवचरित, सर्ग १८, पद्य २८०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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