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________________ ४८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जिनसेन ने अपने से पूर्ववर्ती जिन विद्वानों का उल्लेख किया है वे हैं-- समन्तभद्र, सिद्धसेन, देवनन्दि, वज्रसूरि, महासेन (सुलोचनाकथा के कर्ता), रविषेण ( पद्मपुराण के कर्ता), जटासिंहनन्दि ( वरांगचरित के कर्ता), शान्त (किसी काव्य ग्रन्थ के कर्ता), विशेषवादि (गद्यपद्यमय विशिष्ट काव्य के रचयिता), कुमारसेन, वीरसेन (कवियो के चक्रवर्ती), जिनसेन (पार्वाभ्युदय के कर्ता) तथा एक अन्य कवि ( वर्धमानपुराण के कर्ता)।' उद्योतनसूरि ने कुवलयमाला (श० सं० ७०० =वि० सं० ८३५ =सन् ७७८ ई०) में अपने पूर्ववर्ती अनेक जैन (श्वेता० दिग०) एवं अजैन कवियों का स्मरण किया है। कुछ विद्वान् रविषेण के पद्मचरित और जटानन्दि के वरांगचरित के समान एक गाथा से इस हरिवंश की स्तुति की भी कल्पना करते हैं, जो कि सम्भव नहीं है क्योंकि हरिवंश, कुवलयमाला के बाद (५ वर्ष बाद ) की रचना है। पूर्ववर्ती रचना में परवर्ती रचना के उल्लेख की कम ही संभावना रहती है। दूसरी बात यह है कि कुवलयमाला के निम्नांकित पद्य में प्रथम हरिवंशोत्पत्ति कारक हरिवर्ष कवि की, बुधजनों में प्रिय और विमल अभिव्यक्ति (पदावली ) के कारण, वन्दना की गई है : बुहयणसहस्सदयियं हरिवंसुप्पत्तिकारयं पढमं । वन्दामि वंदियंपि हु हरिवरिसं चेय विमलपयं ।। इससे विदित होता है कि वह हरिवंश अन्य कर्ता की कृति थी, यह नहीं थी। कुछ विद्वान् उक्त गाथा से विमलसूरि कृत हरिवंशचरियं होने की संभावना करते हैं और मानते हैं कि संभवतः जिनसेन का हरिवंश विमलसूरि के प्राकृत हरिवंशचरियं की छाया हो। इस विषय में हमने पउमचरियं के प्रसंग में उक्त संभावना का खण्डन कर दिया है। हाँ, हरिवर्षकृत प्राकृत या संस्कृत में कोई हरिवंसुप्पत्ति उपलब्ध हो तब जिनसेन के हरिवंश का मूल क्या था, इस १. सर्ग १.३१-४०, इसमें विशेषवादि से कहीं उद्योतनसूरि का तो अभिप्राय नहीं ? उनकी कुवलयमाला गद्य-पद्यमय उक्ति-विशेषों से भरा हुआ काव्य है। कुवलयमाला (सिजै० प्र. ४५), पृ. ३, वही, द्वि० भा०, प्रस्तावना पृ० ७६ और नोट्स पृ० १२६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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