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________________ ५९२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रानी ) | कवि का दावा है कि प्रस्तुत नाटक में नवरसों का समावेश किया गया है । संभव है कि स्त्रीपात्र के बिना शृंगारिक भाव की कमी थी इसलिए उसकी पूर्ति के लिए उसे उपस्थित किया गया है । यदि हम उसे नाटक की नायिका समझें तो वीरधवल को नाटक का मुख्य नायक मानना होगा और नाटककार ने संभवतः ऐसा मानकर ही अन्त में उसी से भरतवाक्य कहलाया भी है । दूसरे रूप में नाटक का मुख्य पात्र वस्तुपाल लगता है क्योंकि उसके महान् व्यक्तित्व से सब घटनाएं आच्छादित हैं । मुद्राराक्षस में चाणक्य की भांति वस्तुपाल को भी इस नाटक में चित्रित करने जैसा प्रयत्न दिखायी पड़ता है । रचयिता और रचनाकाल - इस नाटक के लेखक जयसिंहसूरि हैं जो वीरसिंहसूरि के शिष्य तथा भड़ौच में मुनिसुव्रतनाथ चैत्य के अधिष्ठाता थे । इस नाटक के कर्ता और द्वितीय जयसिंहसूर में भ्रान्ति न होना चाहिए क्योंकि द्वितीय जयसिंहसूरि कृष्णर्षिगच्छ के आचार्य तथा महेन्द्रसूरि के शिष्य थे । उन्होंने सं० १३०८ में कुमारपालचरित की रचना की थी । नाटककार इस कृति में वस्तुपाल - तेजपाल के दान से प्रभावित दिखायी पड़ते हैं । उन्होंने वस्तुपाल के पुत्र के अनुरोध पर इस नाटक की रचना की थी । इसकी रचना वि० सं० १२७९ अर्थात् जयन्तसिंह के राज्यपालत्व की प्रारंभ तिथि और जैसलमेर के भण्डार में प्राप्त ताड़पत्रीय प्रति की लेखनतिथि वि० सं० १२८६ के बीच की अवधि में किसी समय हुई होगी । " जयसिंहसूरि की दूसरी कृति ७७ पद्यों में रचित वस्तुपाल-तेजपाल - प्रशस्ति है । करुणावत्रायुध : यह एक एकांकी नाटक है । इसकी कथावस्तु में वज्रायुध चक्रवर्ती द्वारा बाज पक्षी को अपना मांस देकर कबूतर की रक्षा करना दिखाया गया है । 9. महामात्य वस्तुपाल का साहित्यमण्डल और संस्कृत साहित्य में उसकी देन, पृ० १०९. २. जिनरत्नकोश, पृ० ६८; जैन भारमानन्द सभा, संख्या ५६, भावनगर, वि० सं० १९७३; इसका गुजराती अनुवाद अहमदाबाद से वि० सं० १९४३ में प्रकाशित. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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