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________________ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास इसके रचयिता का नाम रत्नसिंह दिया है। यद्यपि कर्ता ने अपना समय और अन्य परिचय नहीं दिया है पर संभव है कि ये नेमिनाथचरित पर आधारित ४८ पद्यों के समस्यापूर्तिकाव्य 'प्राणप्रिय' के कर्ता हों। छायानाटकों की इन कुछ रचनाओं को देखकर हम इतना कह सकते हैं कि संस्कृत के छायानाटक संक्षिप्त और सरल एकांकी रचनाएं होती थी। दोनों रचनाओं में गद्य-पद्य का प्रयोग है पर धर्माभ्युदय में पद्य से कहीं अधिक गद्य है। इनमें कुछ पात्रों से प्राकृत में भी संवाद कराये गये हैं। साहित्य में छायानाटक कही जाने वाली शैली अपेक्षाकृत पीछे की है क्योंकि नाट्य शास्त्र के प्रन्थों में इसका कहीं भी उल्लेख नहीं हुआ है । फिर भी इन नाटकों में पुतलिका का प्रयोग इस बात का संकेत कर रहा है कि संस्कृत नाटक के विकास में कठपुतली के छायानाटकों का भी हाथ है।' हम्मीरमदमर्दन : इस नाटक' का संस्कृत साहित्य में अपना एक स्थान है । पौराणिक घटनाओं पर लिखे संस्कृत नाटक तो बहुत मिले हैं पर उनमें ऐतिहासिक नाटक तो गिने-चने हैं और उनमें भी समकालिक घटनाओं का चित्रण करने वाले तो नहीं ही हैं। पर सौभाग्य से हम्मीरमदमर्दन की रचना समकालिक ऐतिहासिक घटना पर हुई है। इसमें गुजरात के बघेलवंशी नरेश वीरधवल और उसके मंत्री वस्तुपाल द्वारा मुसलमानों के आक्रमण के रोकथाम का चित्रण है। इसके नाम का हम्मीर अरबी शब्द अमीर का अपभ्रंश रूप है जिसका अर्थ उस भाषा में 'एक सरदार' होता है। यहाँ यह दिल्ली के सुलतान के लिए प्रयुक्त हुआ है। इस सुलतान को नाटक में कहीं-कहीं मिलच्छीकार भी कहा गया है । १. महामात्य वस्तुपाल का साहित्यमण्डल, पृ० १६६, २. जिनरस्नकोश, पृ० ४५९; गायकवाइ प्राच्य ग्रन्थमाला, संख्या १०, बड़ौदा, १९२०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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