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ललित वाङ्मय धर्माभ्युदयः ___ यह एकांकी नाटक है । इसमें राजर्षि दशार्णभद्र के जीवन का घटना-प्रसंग वर्णित है। इसका अभिनय, जैसा कि प्रस्तावना में सूचित किया गया है, पार्श्वनाथ के मन्दिर में किया गया था। इसके रचयिता एक जैन साधु मेघप्रभाचार्य हैं जिनके सम्बन्ध में कुछ ज्ञात नहीं है। बहुतकर ये गुजरात के थे क्योंकि इसकी प्रतियां गुजरात में ही मिली है । इसका रचनाकाल यद्यपि मालूम नहीं है पर पाटन के संघभण्डार में इसकी एक प्राचीन ताड़पत्रीय प्रति है जिसका लेखन-समय वि० सं० १२७३ है इसलिए यह उसके पहले की रचना अवश्य है।
इसे 'छायानाट्यप्रबंध' कहा गया है और इसका रंगमंच पर अभिनय किये जाने के स्पष्ट निर्देश दिये गये हैं, जैसे कि जब राजा साधु हो जाने का विचार व्यक्त करे तो यवनिका के भीतर की ओर साधु के वेश में एक पुतला बैठा दिया जाय (यवनिकान्तरात् यतिवेशधारी पुत्रकस्तत्र स्थापनीयः, पृ० १५)।
संस्कृत रूपकों और उपरूपकों की सूची में छायानाटक का कोई उल्लेख नहीं है, इससे उसका स्वरूप क्या होना चाहिए, हम नहीं जानते । अंग्रेजी में छायानाटक को 'शेडो प्ले' कहा जाता है। यहां उक्त प्रकार के नाटकों से कवि का क्या अभिप्राय है, ज्ञात नहीं होता। गुजराती में इस प्रकार का एक नाटक सुभटकृत दूताङ्गद और एक अज्ञात कवि कृत 'शमामृत' है। शमामृत:
नेमिनाथ के जीवन पर आधारित एक दूसरा एकांकी छायानाटक है।'
इसकी प्रस्तावना में कहा गया है-भगवतः श्रीनेमिनाथस्य यात्रामहोत्सवे विद्वद्भिः सभासद्भिरादिष्टोऽस्मि । यथा-श्रीनेमिनाथस्य शमामृतं नाम छायानाटकमभिनयस्वेति ( पृ० १)।
१. जैन मात्मानन्द सभा, संख्या ६१,भावनगर, वि० सं० १९७५; इसका जर्मन
अनुवाद जेह० डी० एम० जी०, भाग ७५, पृ० ६९ प्रभृति और Indische Shatten-theater में पृ० ४८ प्रभृति में हुआ है, जिनरत्नकोश, पृ०
१९५; कीय, संस्कृत ड्रामा, पृ० ५५ और २६९. २. जिनरस्नकोश, पृ० ३७८, जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, वि० सं०
१९७९ में प्रकाशित.
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