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________________ ललित वाङ्मय मुद्रितकुमुदचन्द्र : इस नाटक में पाँच अंक हैं । कथावस्तु बहुत छोटी है जो कि पांचवें अंक की समाप्ति के कुछ पहले सूचित की गई है । तदनुसार इसमें तार्किक देवसूरि द्वारा किन्हीं डिग० मुनि कुमुदचन्द्र की सिद्धराज जयसिंह के दरबार में स्त्रीमुक्ति-सिद्धि विषय पर पराजय दिखाना है । स्त्री-मुक्ति की बात तो ११-१३वीं शता० के जैन न्यायग्रन्थों में खण्डनमंडरूप में दी गई है। दिग० प्रभाचन्द्राचार्य ने अपने दो ग्रन्थों- -न्यायकुमुदचन्द्र और प्रमेय कमलमार्तण्ड में स्त्रीमुक्ति का खण्डन किया है और उसका मण्डन वादिदेवसूरि ने स्याद्वादरत्नाकर नामक ग्रन्थ में किया है । स्याद्वादरत्नाकर और प्रभाचन्द्र के ग्रन्थों की विषयवस्तु में तुलना करने पर यह कहा जा सकता है कि प्रकरणों के क्रम और पूर्वपश्च तथा उत्तरपक्ष के स्थापन की पद्धति में स्याद्वादरत्नाकर न्यायकुमुदचन्द्र के बहुत समीप है और कहीं-कहीं तो दोनों ग्रन्थों में इतना अधिक शब्दसादृश्य है कि दोनों ग्रन्थों की पाठशुद्धि में एक-दूसरे का मूल प्रति की तरह उपयोग किया जा सकता है । ' ५८७ प्रस्तुत नाटक में स्त्रीमुक्ति के पक्ष-विपक्ष में कुछ भी न कह केवल दर्शकों के आगे १०-१५ मिनट का शाब्दिक अभिनय मात्र कराया गया है । इसके पूर्व के अंक उक्त विवाद- अभिनय की भूमिका मात्र हैं जिनमें दिखाया गया है कि दो सम्प्रदायों के लोग एक-दूसरे को लाञ्छित करने में कैसा रस लेते थे और राजवर्ग किस तरह एक-दूसरे के पक्ष समर्थन में आनन्द लेता था । इस कार्य में लांच घूस की भी आशंका की गई है तथा दैवी प्रयोग भी किये गये हैं, यथा अन्त में वज्राला योगिनी का आविष्कार । १. यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, संख्या ८, काशी, वी० सं० २४३२. २. स्मरण रहे कि न्याय कुमुदचन्द्र के इतने महत्वपूर्ण होने पर भी उसकी प्राचीन प्रतियां कम मिली हैं। अनुमान है कि उक्त विषय को रोचक एवं आलंकारिक शैली में प्रतिपादन करने वाले नूतन ग्रन्थ स्याद्वादरत्नाकर के प्रभाव के कारण उसका वाचन पाठन प्रसार रुद्र हो गया हो। इस रुके प्रचार-प्रसार को साम्प्रदायिक द्वेषवश व्यक्तिविशेष की पराजय के रूप में प्रस्तुत करने की दृष्टि से मुद्रितकुमुदचन्द्र नामकरण समझा जा सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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