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ललित वाङ्मय
नालं यत्पदलंघनाय स महादेवो मया वन्द्यते ॥ यो विश्वं वेदवेद्यं जनन जलविधेर्भगिनः पारदृश्वा पौर्वापर्याविरुद्धं वचनमनुपमं निष्कलंकं यदीयम् । तं वन्दे साधुवन्यं सकलगुणनिधिं ध्वस्तदोषद्विषन्तं बुद्धं वा वर्धमानं शतदलनिलयं केशवं वा शिवं वा ॥
दक्षिण भारत के जैन शिलालेखों में भी इस तरह के समन्वयवादी मंगलाचरण' द्रष्टव्य हैं : जयन्ति यस्यावदतोऽपि भारती विभूतयस्तीर्थकृतोऽपि शिवाय..... धात्रे 'सुगताय विष्णवे जिनाय तस्मै सकलात्मने नमः ।
जैन स्तोत्रों के संग्रह' के रूप में अनेक संस्करण निकल चुके हैं। उनमें से काव्यमाला, बम्बई के प्रथम गुच्छक और सप्तम गुच्छक में अनेक स्तोत्र संकलित
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। मुनि चतुरविजयजी द्वारा सम्पादित जैनस्तोत्रसन्दोह, भाग १ - २ में अनेकों प्राकृत संस्कृत स्तोत्र संकलित हैं। इसके भाग १ के परिशिष्ट में प्रकाशित सभी स्तोत्रों की सूची दी गई है जो बड़ी उपयोगी है । चतुरविजयजी द्वारा सम्पादित एक अन्य संकलन जैनस्तोत्रसमुच्चय के दो भागों में तथा यशोविजय जैन ग्रन्थमाला से प्रकाशित जैनस्तोत्रसंग्रह के दो भागों में अनेक स्तोत्रों का संकलन हुआ है । आगमोदय समिति, बम्बई ने प्रो० हीरालाल रसिकदास कापड़िया के सम्पादकत्व में स्तोत्रों के सटीक, सचित्र और समंत्र कई भाग निकाले हैं जो स्तोत्र - साहित्य के ज्ञान के लिए महत्वपूर्ण हैं । साराभाई मणिलाल नवाब, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित महाप्राभाविक नवस्मरण में गुजराती अनुवाद और माहात्म्यकथाओं के साथ उवसग्गहर, भक्तामर, कल्याणमन्दिर आदि ९ स्तोत्रों का विस्तार के साथ निरूपण किया गया है । जर्मन विदुषी Dr. Charlotte Krause कृत Ancient Jain Hymns में ८ स्तोत्रों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ स्तोत्र - साहित्य के महत्त्व को बतलाने के लिए ९ पृष्ठों की भूमिका दी गई है जो पठनीय है। मा० दिग० जैन ग्रन्थमाला से प्रकाशित
१. जैन शिलालेख संग्रह, भाग ३, पृ० ८५.
२. जैन स्तोत्रों के संग्रह की विधि प्राचीन है । वि० सं० १५०५ में हिमांशुगणि कृत एक संकलन मिलता है-जिनरत्नकोश, पृ० १४५; अन्य स्तोत्रकोशों की सूची जिनरत्नकोश, पृ० ४५३ में दी गई है ।
सिंधिया ओरियण्टल सिरीज, संख्या २, उज्जैन,
Jain Education International
१९५२.
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