SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 583
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास बुद्धस्त्वमेव विबुधाचिंतबुद्धिबोधात् त्वं शंकरोऽसि भुवनत्रयशंकरत्वात् । धातासि धीर ! शिवमार्गविधेर्विधानात् । व्यक्तं त्वमेव भगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि ॥२५॥ आराध्य की उदारता और स्तोता की विनयशीलता को व्यक्त करने वाले कल्याणमन्दिरस्तोत्र के दो पद्य' पठनीय हैं : त्वं नाथ ! दुःखिजनवत्सल ! हे शरण्य ! कारुण्यपुण्यवसते ! वशिनां वरेण्य ! भक्त्या मते मयि महेश ! दयां विधाय दुःखांकुरोद्दलनतत्परतां विधेहि ।। ३९ ॥ देवेन्द्रवन्ध ! विदिताखिलवस्तुसार! संसारतारक ! विभो ! भुवनाधिनाथ ! त्रायख देव ! करुणाह्रद ! मां पुनोहि सीदन्तमद्य भयदव्यसनाम्बुराशेः॥४१॥ स्तोत्ररचना में हेमचन्द्राचार्य सबसे बड़े समन्वयवादी थे। उनके द्वारा रचित वीतरागस्तोत्र', महादेवस्तोत्र' के पद्य सदा स्मरणीय हैं : भवबीजांकुरजनना रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो वा नमस्तस्मै ।। यत्र यत्र समये यथा यथा योऽसि सोऽस्यभिधया यया तया। वीतदोषकलुषः स चेद्भवानेक एव भगवन्नमोऽस्तु ते ॥ त्रैलोक्यं सकलं त्रिकालविषयं सालोकमालोकितं साक्षायेन यथा स्वयं करतले रेखात्रयं सांगुलिं । रागद्वेषभयान्तकजरालोलत्वलोभादयो १. काव्यमाला, सप्तम गुच्छक, पृ० १७. २. देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, ग्रन्थांक । ३. वही. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy