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ललित वाङ्मय
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वस्तुपाल ( १३वीं शती ) का अम्बिकास्तवन', पद्मनन्दि भट्टारक' कृत रावण-पार्श्वनाथस्तोत्र, शान्तिजिनस्तोत्र, वीतरागस्तोत्र आदि, शुभचन्द्र भट्टारककृत शारदास्तवन', मुनिसुन्दर (१४वीं शती) कृत स्तोत्ररत्नकोष, भानु चन्द्रगणिकृत सूर्यसहस्रनामस्तोत्र आदि स्तोत्र हजारों की संख्या में ज्ञात एवं अशातकर्तृक उपलब्ध हुए हैं जिनका उल्लेख करना दुष्कर है।
जैन समाज में सबसे प्रिय दो स्तोत्र माने गये हैं : एक तो मानतुंगाचार्य का भक्तामरस्तोत्र जो कि प्रथमतीर्थकर की स्तुति के रूप में ( ४४ या ४८ पद्यों में) रचा गया है और दूसरा कुमुदचन्द्र का कल्याणमन्दिरस्तात्र (४४ पद्यों में) जिसमें पाश्वनाथ की स्तुति की गई है। ये दोनों स्तोत्र अपने आराध्य के प्रति व्यक्त किये भक्तिभरे उदार एवं समन्वयात्मक भावों के कारण उच्च कोटि के माने गये हैं। भक्तामरस्तोत्र के कुछ पद्य ध्यातव्य हैं :
त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांस
मादित्यवर्णममलं तमसः पुरस्तात् । त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्यु
नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र ! पन्थाः।। २३ ।। त्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसंख्यमाद्यं
ब्रह्माणमीश्वरमनन्तमनङ्गकेतुम् । योगोश्वरं विदितयोगमनेकमेकं
ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः ।। २४ ।।
1. महामात्य वस्तुपाल का विद्यामण्डल, पृ. १९३, जैनस्तोत्रसमुच्चय,
पृ० १४३. २. अनेकान्त, वर्ष ९, किरण .. ३. डा. कैलाशचन्द्र जैन, जैनिज्म इन राजस्थान, सोलापुर, १९६३, पृ० १६७. ४. जैनस्तोत्रसंग्रह, भाग २; जिनरत्नकोश, पृ० ४५३. ५. जिनरत्नकोश, पृ० ४५२; जैन युवक मंडल, सूरत, वि० सं० १९९८. १. काव्यमाला, सप्तम गुच्छक, पृ० ६.
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