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________________ ५७२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सिद्धान्तसारादिसंग्रह भी अनेक स्तोत्रों के परिज्ञान के लिए श्लाघनीय है । जैनों के असंख्य अप्रकाशित स्तोत्रों के नाम और नमूने ग्रन्थभण्डारों की प्रकाशित सूचियों में भलीभांति देखे जा सकते हैं। दृश्यकाव्य-नाटक: काव्य के दो प्रधान भेदों-श्रव्य और दृश्य में से नाटक या रूपक दृश्यकाव्य विधा है । इसका विकासक्रम भारतीय परम्परा में ऋग्वेदकाल से ढूंढा जा सकता है। ऋग्वेद के सरमा और पणि, यम और यमी, विश्वामित्र और नदी, पुरुरवा और उर्वशी के संवादों में नाटक साहित्य के प्राचीनतम रूप मिलते हैं। नाटक के प्रधान तत्त्व संवाद, संगीत, नृत्य और अभिनय हैं। अधिकांश विद्वान् इन चारों तत्वों को वेद में उपलब्ध होने से नाटक की उत्पत्ति वैदिक सूक्तों से मानते हैं। रामायण और महाभारत काल में आकर नाटक के कुछ स्पष्ट रूप उल्लिखित पाये जाते हैं। विराटपर्व में रंगशाला का निर्देश है। हरिवंशपुराण में रामायण की कथा पर एक नाटक के अभिनीत होने की चर्चा है। रामायण में रंगमंच, नट, नाटक का विभिन्न स्थलों में निर्देश है। पाणिनि की अष्टाध्यायी में नटसूत्र और नाट्यशास्त्र का भी उल्लेख है। पातंजल महाभाष्य में कंसवध और बालिबंधन नामक दो नाटकों का स्पष्ट नाम है । __ रायपसेणियसुत्त (द्वितीय उपांग ) में सूर्याभदेव अधिकार में उल्लेख है कि देव-देवियों ने महावीर स्वामो से ३२ प्रकार के नाटक खेलने की तीन बार अनुमति मांगो पर उत्तर नहीं मिला तब उन्होंने महाबोर के स्वर्ग च्यवन, गर्भ, जन्म, अभिषेक बालकोड़ा, यौवन, निष्क्रमण, तपश्चर्या, केवलज्ञान, तोर्थप्रवर्तन, निर्वाण आदि प्रसंगों का बाजे बजाकर, सगोत सुनाकर, नृत्य और अभिनय कर मूक अभिनय जैसा नाटक किया। १०वें उपांग पुष्पिका में इन्द्र ने महावीर के समक्ष सूर्याभदेव के द्वारा नाट्यविधि का प्ररूपण कराया है। वहां सूर्य. शुक्र आदि दस व्यक्तियों की ओर से अभिनीत नाटक का उल्लेख मिलता है। पिण्डनिज्जुत्ति (गा० ४७४-४८०) में 'रट्टवाल' नाटक का उल्लेख आया है। इसमें भरत चक्रवर्ती का जीवनवृत्त आषाढभूति मुनि ने अभिनोत किया है। इसे देख राजा-राजकुमार आदि संसार से उद्विग्न हो गये। कहते हैं कि संसार को हानि होते देख यह नाटक नष्ट कर दिया गया । उत्तराध्ययन को वृत्ति में नेमिचन्द्र ने मधुकरीगीत और सोयामणि इन दो नाटकों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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