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________________ पौराणिक महाकाव्य ४५ तथा द्वादशांग का वर्णन राजवार्तिक से मेल खाता है। व्रतविधान, समवसरण और जिनेन्द्रविहारवर्णन भी बड़े ही परिपूर्ण हैं । ऐतिहासिक दृष्टि से हरिवंशपुराण अपने समय की कृतियों में निराला है। इसके कर्ता ने अपना परिचय भले प्रकार से दिया है। उन्होंने अपनी रचना शक सं० ७०५ में सौराष्ट्र के वर्धमानपुर में समाप्त की थी और अन्य समाप्ति-वर्ष के काल में अपने चारों ओर भारतवर्ष की राजनीतिक स्थिति का दिग्दर्शन कराते हुए जिनसेन ने कहा है कि उस समय उत्तर दिशा में इन्द्रायुध, दक्षिण दिशा में कृष्ण का पुत्र श्रीवल्लभ और पूर्व में अवन्तिनरेश वत्सराज और पश्चिम में सौरों के अधिमण्डल-सौराष्ट्र में वीर जयवराह राज्य करते थे। इतना ही नहीं इस रचना में ऐतिहासिक चेतना के और भी दर्शन होते हैं, यथा-भगवान् महावीर के समय से लेकर गुप्तवंश एवं कल्कि के समय तक मध्यदेश पर शासन करनेवाले प्रमुख राजवंशों की परम्परा का उल्लेख, अवन्ती की गद्दी पर आसीन होनेवाले राजवंश और रासभवंश (जिसमें प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य हुआ है) का क्रम दिया है, साथ ही जैन इतिहास की दृष्टि से भगवान महावीर से लगाकर ६८३ वर्ष की सर्वमान्य गुरु-परम्परा और उसके आगे अपने समय तक की अन्यत्र अनुपलध अविच्छिन्न गुरु-परम्परा भी दी गई है एवं अपने से पूर्ववर्ती अनेक कवियों और कृतियों का परिचय प्रस्तुत किया गया है। इस तरह हम हरिवंशपुराण में पुराण, महाकाव्य, विविध विषयों को प्रतिपादन करनेवाले विश्वकोश तथा राजनीतिक और धार्मिक इतिहास के स्रोत आदि के समुदित दर्शन करते हैं। ग्रन्थकार ने अपने इस ग्रन्थ के सम्बन्ध में स्वयं इस प्रकार कहा है कि जो इस हरिवंश को श्रद्धा से पढ़ेंगे उन्हें अल्प यत्न से ही अपनी आकांक्षित कामनाओं की पूरी सिद्धि होगी तथा धर्म, अर्थ और १. वर्धमानपुर की पहचान और इस प्रशस्ति में उल्लिखित नरेशों की पहचान पर विद्वानों में बड़ा मतभेद है। इन सबकी समीक्षा डा० मा० ने० उपाध्ये ने कुवलयमाला (सि. जै० प्र० ४६) भाग २ की अंग्रेजी प्रस्तावना के पृष्ठ १०५-१०७ में विस्तार से की है। २. सर्ग ६६.५२-५३. ३. सर्ग ६०.४८७-४९२. ४. सर्ग ६६.२१-३३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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