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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास प्राचीन जैन साहित्य में कृष्ण के पिता वसुदेव का चरित बड़े रोचक और व्यापक रूप से वर्णित है। इस वर्णन में १-२ ही नहीं बल्कि १५ सग ( १९-३३ सग) लगाये गये हैं। यह बड़ा भाग ग्रन्थ के चतुर्थाश जैसा ही है । इस ग्रन्थ के पूर्व भद्रबाहु कृत 'वसुदेवचरित' ( अनुपलब्ध ) और वसुदेवहिण्डो ( संघदासगणिकृत ) में वसुदेव की कौतुकपूर्ण कथा वर्णित है। वसुदेव के चरित से सम्बद्ध श्री कृष्ण, बलराम तथा अन्य यदुवंशी पुरुषों-प्रद्यम्न, साम्ब, जरत्कुमार आदि के चरितों और राजगृह के राजा जरासंध और महाभारत के नायक कौरवपाण्डवों का वणन भी जैन मान्यतानुसार प्रस्तुत किया गया है । ग्रन्थ के उत्तरार्ध को हम यदुवंशचरित और जैन महाभारत भी कह सकते हैं।
नेमिनाथ का इतना वर्णन इससे पूर्व अन्यत्र कहीं स्वतन्त्र रूप में देखने को नहीं मिलता। केवल उत्तराध्ययन सूत्र के रहनेमिज' नामक २२वें अध्ययन में वह चरित्र अंश रूप से ४९ गाथाओं में दिया गया है। ग्रन्थ में चारुदत्त और बसन्तसेना का वृत्तान्त विस्तार से दिया गया है। इसके पूर्व वसुदेवहिंडी और बृहत्कथाश्लोक संग्रह में भी यह कथानक आया है जिसका स्रोत गुणाढ्य की बृहत्कथा माना जाता है। मृच्छकटिक में इस कथानक का नाटकीय रूप दिया गया है।
हरिवंशपुराण न केवल एक कथाग्रन्थ है बल्कि महाकाव्य के गुणों से गुंथा हुआ एक उच्चकोटि का काव्य भी है। इसमें सभी रसों का अच्छा परिपाक हुआ है। युद्ध वर्णन में जरासंध और कृष्ण के बीच रोमांचकारी युद्ध वीर रस का परिपाक है। द्वारिका-निर्माण और यदुवंशियों का प्रभाव अद्भुत रस का प्रकर्ष है। नेमिनाथ का वैराग्य और बलराम का विलाप करुण रस से भरा हुआ है। इस काव्य का अन्त शान्त रस में होता है। प्रकृति-चित्रण रूप ऋतु-वर्णन, चन्द्रोदय-वर्णन आदि अनेक चित्र काव्यशैली में दिये गये हैं।
ग्रन्थ की भाषा प्रौढ़ एवं उदात्त है तथा अलंकार और विविध छन्दों से विभूषित है। रस के वर्णन के अनुकूल ही कवि ने छन्द चुने हैं। पचपनवाँ सर्ग यमकादि अलंकारों से सुशोभित है। नेमिनाथ के स्तवन में पूरा ३९वाँ सर्ग वृत्तानुगन्धी गद्य में लिखा गया है। पद्यमय ग्रन्थों में इस प्रकार का प्रयोग रविषेण के पद्मचरित के अतिरिक्त यहाँ ही देखने को मिलता है, अन्यत्र नहीं । कवि की वर्णन-शैली अपूर्व है। वसुदेव की संगीत-कला के वर्णन में १९वें सर्ग के १२० श्लोक लगाये गये हैं। वह वर्णन भरतमुनि के नाट्यशास्त्र से अनुप्राणित है। इस ग्रन्थ का लोकविभाग और शलाकापुरुषों का वर्णन 'तिलोयपण्णत्ति' से
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