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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गर्भितस्तव-इसमें 'सिद्धोवर्णसमाम्नाय' आदि कलापव्याकरण के संधिसूत्रों की पादपूर्ति में २३ पद्य रचे गये हैं। ३. शंखेश्वरपार्श्वस्तुति-इसके प्रथम चार पद्यों में अमरकोष के प्रथम श्लोक के चारों चरणों को बड़ी कुशलता के साथ समाविष्ट किया गया है। प्रथम पद्य के प्रथम चरण में अमरकोष के प्रथम श्लोक का प्रथम चरण, द्वितीय पद्य के द्वितीय चरण में उसका दूसरा चरण, तृतीय पद्य के तृतीय चरण में उसका तृतीय चरण तथा चतुर्थ पद्य के चतुर्थ चरण में उसका चतुर्थ चरण है।
इसके अतिरिक्त कई सुभाषितों, फुटकर पद्यों और अप्रसिद्ध काव्यों की पादपूर्ति के रूप में जैन पादपूर्ति-साहित्य मिलता है। सबका परिगणन यहां सम्भव नहीं है।
दूतकाव्यों और पाटपूर्ति-साहित्य के अतिरिक्त गीतिकाव्य के गेय रसमुक्तक काव्य का एक सुन्दर जैन उदाहरण गीतवीतराग काव्य है।
गीतवीतरागप्रबन्ध:
___ इसकी रचना जयदेव के गीतगोविन्द के अनुकरण पर की गई है । इसका जिनाष्टपदी नाम से भी उल्लेख जिनग्नकोश में किया गया है जो संभवतः इसकी अष्टक या अष्टपदों में रचना के कारण है। इसमें कवि ने तीर्थंकर ऋषभदेव के दस पूर्वभवों की कथा का वर्णन करते हुए स्तुति की है। कथावस्तु को २५ लघु प्रबन्धों में विभक्त किया गया है जिनके नाम इस प्रकार हैं : १. महाबलसद्धर्मप्रशंसा, २. महाबल-वैराग्योत्पादन, ३. ललिताङ्ग-वनविहार, ४. श्रीमतीजातिस्मरण, ५. वज्रजंघ-पट्टकथा, ६. श्रीमती-सौरुप्यवर्णन, ७. श्रीमती-विरह
१. जैन स्तोत्रसन्दोह, भाग २ में प्रकाशित. २. श्री अगरचन्द नाहटा का लेख 'जैन पादपूर्ति काव्य-साहित्य', जैन सिद्धान्त
भास्कर, भाग ३, किरण २-३. ३. जिनरत्नकोश, पृ० १०५, १३९; डा० मा० ने० उपाध्ये द्वारा सम्पादित,
भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी से १९७२ में प्रकाशित; शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर की पत्रिका (१९६९) में डा० उपाध्ये का लेख 'पण्डि
ताचार्य का गीतवीतराग'. १. उक्त काव्य पर डा० उपाध्ये की अंग्रेजी भूमिका, पृ. ३..
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