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ललित वाङ्मय
२. शिशुपालवध की समस्यापूर्ति : यथा महोपाध्याय मेघविजयकृत देवानन्दाभ्युदय', इसका विवरण भी हम दे चुके हैं। इसमें माघकवि के शिशु. पालवध के प्रत्येक पद्य के अन्तिम चरण को लेकर शेष तीन पाद स्वयं नये बनाकर सतसर्गात्मक रचना की गई है।
३. नैषधकाव्य की समस्यापूर्ति : यथा पूर्वोक्त मेघविजयकृत शान्तिनाथचरित्र । इसमें नैषधकाव्य के प्रथम सर्ग के समस्त पद्यों के चरणों ( केवल २८वे पद्य के चतुर्थ पाद के अतिरिक्त) की समस्यापूर्ति कर ६ सर्गों के एक काव्य की रचना को गई है । नैषध के प्रथम चरण को प्रथम चरण में, द्वितीय को द्वितीय, तृतीय को तृतीय एवं चतुर्थ को चतुर्थ चरण में नियोजित कर प्रथम सर्ग को पूर्णतः समाविष्ट कर दिया गया है। इतना ही नहीं, इस काव्य में कहीं-कहीं नैषधोयकाव्य के एक ही चरण को भिन्न-भिन्न अर्थों की अपेक्षा से दो-दो, तीन-तीन बार भी पूरित या नियोजित किया गया है । ____४. जैन स्तोत्रों की पादपूर्ति : यथा-१. प्रसिद्ध भक्तामरस्तोत्र की समस्यापूर्ति : इसका विवरण हम स्तोत्र-साहित्य में दे रहे हैं। २. कल्याणमन्दिरस्तोत्र की समस्यापूर्ति : यथा भावप्रभसूरिकृत जैनधर्मवरस्तोत्र, पार्श्वनाथस्तोत्र, विजयानन्दसूरीश्वरस्तवन, वीरस्तुति आदि । ३. उवसग्गहरस्तोत्र की पादपूर्ति ।' ४. प्रसिद्ध विभिन्न जैन स्तुतियों की पादपूर्ति ।
५. जैनेतर स्तोत्र-व्याकरणादि की पादपूर्ति : यथा-१. शिवमहिम्नस्तोत्र की पादपूर्ति म रत्नशेखरसूरिकृत ऋषभमहिम्नस्तोत्र ।। २. कलापव्याकरणसंधि
१. सिंघी जैन ग्रन्थमाला, बम्बई, १९३७. २. पं. हरगोविन्ददास द्वारा संशोधित और विविध साहित्य शास्त्रमाला द्वारा
१९१८ में प्रकाशित. ३. देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, ग्रन्थांक ८०; जैन सत्यप्रकाश, वर्ष
५, अंक १२ में प्रकाशित श्री अगरचन्द नाहटा का लेख. १. जैन स्तोत्र तथा स्तवनसंग्रह अर्थसहित १९०७ में प्रकाशित ५. श्री भगरचन्द नाहटा का लेख-श्री महावीरस्तवन (संसार-दावा पाद.पूर्तिरूप), जैन सत्यप्रकाश, ५.१० तथा नाहटाजीलिखित भावारिवारण
पादपूर्त्यादि स्तोत्रसंग्रह-प्रस्तावना. ६. जिनरस्नकोश, पृ० ५८.
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