SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 562
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ललित वाङ्मय ५४९ पाठक पद्य-पद्य में वर्णित राजीमती की दुःखित अवस्था में तन्मय होकर इस दुःख को स्वयं अनुभव करने लगता है । शान्तरसप्रधान होने पर भी नेमिदूत सन्देशकाव्य की अपेक्षा विरहकाव्य अधिक है । इसमें काव्यचमत्कार, उक्तिवैचित्र्य और रागात्मक वृत्ति की गंभीरता का मधुर एवं करुण परिपाक है । रचयिता एवं रचनाकाल -- इसके कर्ता खम्भात निवासी सांगण के पुत्र कवि विक्रम हैं । ये किस सम्प्रदाय के थे, यह विवादग्रस्त है ।' स्व० पं० नाथूराम प्रेमी इन्हें हूंड (दिग० ) जाति का मानते हैं तो मुनि विनयसागरजी खरतरगच्छाधीश जिनेश्वरसूरि के शिष्य होने से हूम्बड (श्वेताम्बराम्नायी) बतलाते हैं नेमिदूत के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि यह कृति असाम्प्रदायिक है । इसमें श्वेताम्बर या दिगम्बर आम्नाय की कोई बात नहीं कही गई है । इस काव्य की प्राचीनतम प्रति वि० सं० १४७२ की और दूसरी वि० सं० १५१९ की मिली है अतः वि० सं० १४७२ के पूर्व कवि को मानने में किसी प्रकार का विरोध नहीं है । प्रेमीजी के मत से कवि १३वीं शती और विनयसागर के मत से १४वीं शती में हुए थे । जैनमेघदूत : नेमिनाथ और राजीमती के प्रसंग को लेकर यह दूसरा दूतकाव्य है । ' इसमें कवि ने दूसरे दूतकाव्यों की तरह मेघदूत की समस्यापूर्ति का आश्रय नहीं लिया । यह नामसाम्य के अतिरिक्त शैली, रचना, विभाग आदि अनेक बातों में स्वतंत्र है । इसमें ४ सर्ग हैं और प्रत्येक में क्रमशः ५०, ४९, ५५ और ४२ पद्य हैं । कथावस्तु संक्षेप में इस प्रकार है - नेमिकुमार पशुओं का करुण चीत्कार सुनकर वैवाहिक वेष-भूषा का त्याग कर मार्ग से ही रैवतक ( गिरनार ) पर मुनि न तपस्या करने चले गये । राजीमती, जिसके साथ उनका विवाह हो रहा था, उक्त समाचार से मूच्छित हो गई । सखियों द्वारा उपचार करने पर उसे I १. विवेचन के लिए देखें-संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योग दान, पृ० ४७८-४७९. २. जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, १९२४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy