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________________ ५५० जैन साहित्य का वृहद् इतिहास होश आया। उसने अपने समक्ष उपस्थित मेघ को अपने विरक्त पति का परिचय देकर प्रियतम को शान्त करने, रिझाने के लिए दूत के रूप में चुना और अपनी दुःखित अवस्था का वर्णन कर अपने प्राणनाथ को भेजने वाला सन्देश सुनाया। इस सन्देश को सुनकर सखियां रोजीमती को समझाती हैं कि नेमि. कुमार मनुष्यभव को सफल बनाने के लिए वीतरागी हुए हैं, वे अब अनुराग की ओर प्रवृत्त नहीं हो सकते । कहां मेघ, कहाँ तुम्हारा सन्देश और कहां उनकी वीतरागी प्रवृत्ति ? इन सबका मेल नहीं बैठता। अन्त में राजीमती शोक त्यागकर नेमिनाथ के पास जाकर साध्वी बन जाती है। पदलालित्य, अलंकारबाहुल्य और प्रासादिकता के कारण यह उच्चकोटि का काव्य है पर श्लेषपदों और व्याकरण के क्लिष्ट प्रयोगों के कारण यह काव्य दुरूह हो गया है। इसमें मेघ और नेमिनाथ का परिचय तो दिया गया है पर मौगोलिक स्थानों के निर्देश का अभाव है। रचयिता और रचनाकाल-इस दूतकाव्य के रचयिता मेरुतुंग आचार्य हैं चो अञ्चलगच्छीय महेन्द्रप्रभसूरि के शिष्य थे। ये प्रबंधचिन्तामणि के रचयिता मेरुतुंग से भिन्न हैं। इस काव्य का रचनासमय तो कहीं नहीं दिया गया, पर मेरुतुंग का समय वि० सं० १४०३ से १४७३ तक सिद्ध होता है । इस समय में कवि ने जैनमेघदूत, सप्ततिकाभाष्य, लघुशतपदी, धातुपारायण, षड्दर्शनसमु. च्चय, बालबोधव्याकरण, सूरिमंत्रसारोद्धार आदि आठ ग्रन्थ लिखे थे। इस पर शीलरत्नसूरिविरचित वृत्ति प्रकाशित है।' शीलदूत : - यह कालिदास के मेघदूत के अनुकरण पर बनाया गया है और उसके प्रत्येक पद्य के चौथे चरण को समस्यापूर्ति के रूप में अपनाया गया है। इसलिए इसका छन्द मन्दाक्रान्ता है। पद्य-संख्या १३१ है। इसमें स्थूलभद्र और कोशा वेश्या के प्रसिद्ध कथानक को लेकर स्थूलभद्र के ब्रह्मचर्य महाव्रत को १. जैन मात्मानन्द समा, भावनगर, १९२८. १. यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी, १९१५., जिनरस्नकोश, पृ० १०॥ जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० १६९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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