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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आदिपुराण ( महापुराण ) का अच्छा उपयोग किया गया है क्योंकि ग्रंथ में उक्त पुराण के कहीं तो पूरे श्लोक और कहीं एक या दो चरण ज्यों के त्यों काव्य के अंग के रूप में ग्रहण कर लिये गये हैं। इसके गद्य सरल हैं। कठिन गद्यों को समझाने के लिए सहायक टीका भी दी गई है। ___ रचयिता एवं रचनाकाल-इसके रचयिता कवि अर्हद्दास हैं । इनका परिचय इनके अन्य ग्रंथ मुनिसुव्रत काव्य के प्रसंग में दिया गया है ।' अर्हद्दास का समय वि० सं० १३२५ के लगभग माना गया है। इसलिए यह चौदहवीं शताब्दी के पूर्व भाग की रचना है । चम्पूमण्डन:
यह आठ पटलों में विभाजित है। इसमें द्रौपदी और पांडवों की कथा वर्णित है । यह गद्य पद्य की सुललित शैली में लिखा गया लघु चम्पूकाव्य है ।
रचयिता एवं रचनाकाल-इसके रचयिता मालवा के प्रसिद्ध कवि मण्डन है जिन्होंने कादम्बरीमण्डन आदि ग्रंथ लिखे हैं। ये १५वीं शताब्दी के कवि थे।
इसकी प्राचीन हस्तलिखित प्रति सं० १५०४ में लिखी मिलती है।
अन्य चम्पुओं में जयशेखरसूरि का नलदमयन्तीचम्पू उल्लेखनीय है । गीतिकाव्य:
। यद्यपि संस्कृत काव्यशास्त्रियों ने गीतिकाव्य नाम से कोई भी काव्यविधा नहीं मानी, परन्तु संस्कृत में गीति काव्य हैं। गीतिकाव्य उसे कहते हैं जिसमें गेयरूप से रसपूर्ण एक भाव की अभिव्यक्ति हो। पाश्चात्यशास्त्रियों
और हिन्दी के काव्यमर्मज्ञों ने गीतिकाव्यों पर पूर्ण विचार प्रकट किये हैं। उनकी पर्यालोचना करने से कुछ प्रमुख तत्त्व इस प्रकार सामने आते हैं : १. अन्तर्वृत्ति को प्रधानता, २. संगीतात्मकता, ३. निरपेक्षता, ४. रसात्मकता, ५. रागात्मक अनुभूतियों को सघनता, ६. भावसान्द्रता, ७. चित्रात्मकता, ८. समाहित प्रभाव, ९. मार्मिकता, १०. संक्षिप्तता, ११. स्वाभाविक अभिव्यक्ति और १२. सहज अन्तःप्रेरणा ।
१. तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी के जैन संस्कृत महाकाव्य (डा. श्यामशंकर
दीक्षित), पृ. ३२५-३२६ में कविपरिचय द्रष्टव्य है। २. हेमचन्द्राचार्य ग्रन्थमाला, पाटन (गुजरात), १९९८, जिनरत्नकोश,
पृ० १२१.
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