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ललित वाङ्मय
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संस्कृत में प्रबंधात्मक गीतिकाव्य और मुक्तक गीतिकाव्य ये दो प्रकार मिलते हैं। प्रबंधात्मक गीतिकाव्य मेघदूत या उसके अनुसरण पर लिखे गये अनेक संदेशकाव्य हैं। पर अधिकांश गीतिकाव्य मुक्तक शैली में लिखे गये हैं। मुक्तक काव्य के दो भेद हैं : १. रसमुक्तक और २. रसेतरमुक्तक । रस. मुक्तक में मेघदूत, पार्वाभ्युदय, चौरपंचाशिका, गीतगोविन्द, गीतवीतराग काव्य आते हैं। रसेतर गीति-साहित्य में स्तोत्र, शतक आदि साहित्य का स्थान है।
यहाँ हम गोतिकाव्य के क्षेत्र में जैन कवियों के योगदान की चर्चा
करेंगे।
रसमुक्तक पाठ्य गोतिकाव्य-दूत या सन्देशकाव्य (खण्डकाव्य):
इस विधा के साहित्य ने संस्कृत साहित्य में गीतिकाव्य (Lyric Poetry) के अभाव की पूर्ति की है । दूतकाव्य विरह या विप्रलंभ शृंगार की पृष्ठभूमि लेकर लिखे गये हैं। इनमें नायक द्वारा नायिका के प्रति या नायिका द्वारा नायक के प्रति किसी दूत के माध्यम से प्रेमसन्देश भेजा जाता है। दूत का कार्य कोई पुरुष, पक्षी, भ्रमर, मेघ, पवन, चन्द्रमा, चरणचिह्न, मन या शील आदि तत्वों द्वारा कराया जाता है। इस शैली में दो तत्त्व देखे जाते हैं : एक वियोग और दूसरा प्रकृति या भावना का मानवीकरण । यद्यपि प्रसंगवशात् दूतकाव्यों में नगर, पर्वत, नदी, सूर्योदय, चन्द्रोदय, रात्रि, वसन्त और जलक्रीड़ा आदि का वर्णन रहता है पर वह इतना संक्षिप्त होता है कि काव्य बड़े आकार का नहीं बन पाता इसलिए इन्हें हम खण्डकाव्य या गीतिकाव्य कहते हैं।
वैसे तो भावनाक्रान्त मानस द्वारा प्राणिविशेष को दूत बनाकर प्रेयसी' के पास सन्देश भेजने की सूझ प्राचीन भारतीय साहित्य में मिलती है पर महाकवि कालिदास का मेघदूत इसका अनोखा उदाहरण है। संस्कृत के दूतकाव्यों का प्रारम्भ भी इसी से होता है। बाद के दूतकाव्यों की रचना में उक्त काव्य से सहायता ग्रहण करने के संकेत दिखाई देते हैं।
जैन कवियों ने दूतकाव्य के क्षेत्र और वस्तुकथा को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। पहला तो विप्रलंभ शृंगार के स्थान में शान्तरस
१. सरमा-पणिसंवाद, ऋग्वेद, मण्डल १०, अनुवाक ८. सूक्क ....१-११.
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