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ललित वाङ्मय
इस चम्पू के पद्यों, गयों और भावों से सादृश्य रखने वाले अंशों का तुलनात्मक अध्ययन स्व० कुप्पुस्वामो शास्त्री ने अपने सम्पादित इस ग्रन्थ के संस्करण में तथा क्षत्रचूडामणि के संस्करण में अच्छी तरह किया है जो वहीं से द्रष्टव्य है। कुछ उल्लेखौ का भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित संस्करण की भूमिका में भी दिग्दर्शन कराया गया है । लगता है कि इस काव्य की रचना गद्यचिन्तामणि
और क्षत्रचूडामणि को सामने रख कर की गई है। अन्य कृतियों की भाँति इस कृतिमें भी रघुवंश, कुमारसंभव, शिशुपालवध और नैषध के प्रभाव द्रष्टव्य हैं।
कर्ता एवं रचनाकाल-इस चम्पू और धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्य के कर्ता एक ही महाकवि हरिचन्द्र माने जाते हैं। दोनों काव्यों के भावों तथा शब्दों में नो समानता है तथा पद-पद पर सादृश्य, अलंकारयोजना और शब्दविन्यास को जो एक-सी शैली है वह पर्याप्त रूप से सिद्ध करती है कि दोनों का कर्ता एक है।' जीवन्धरचम्पू की हस्तलिखित प्रति के पुष्पिका-वाक्यों में इसके कर्ता हरिचन्द्र का उल्लेख मिलता है। ग्रन्थान्त में ग्रन्थकर्ता ने स्वयं अपने नाम का उल्लेख किया है।
पुरुदेवचम्पू:
यह चम्पू* दस स्तबकों में विभाजित है। इसमें पुरुदेव अर्थात् भगवान् आदिनाथ का चरित वर्णित है। इसकी रचना में अर्थगांभीर्य की अपेक्षा शब्दों के चयन में विशेष ध्यान दिया गया है। सर्वत्र अर्थालंकार की अपेक्षा शब्दालंकार का प्रयोग अधिक दिखाई पड़ता है। इस ग्रन्थ के अन्तःपरीक्षण से ज्ञात होता है कि इस ग्रन्थ के पद्य भाग की रचना में जिनसेनाचार्य के
1. प्रस्तावना में सादृश्यपरक भनेक अवतरण द्रष्टव्य हैं, पृ० ३७-४०. २. इति महाकविहरिचन्द्र विरचिते ......। ३. सिद्धः श्रीहरिचन्द्रवाङ्मय आदि, पद्य ५८, लम्भ ११. ४. भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी, १९७२, . पनालाल साहित्याचार्य द्वारा
सम्पादित एवं अनूदित; माणिकचन्द्र दिग. जैन ग्रन्थमाला, बम्बई (सं० १९८५) से पं० फडकुले शास्त्री द्वारा सम्पादित एवं प्रकाशित; जिनरस्नकोश, पृ० २५३.
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