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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास __ परवर्ती आचार्यों ने रविषेण और उनकी कृति का ससम्मान उल्लेख किया है। उद्योतनसूरि ने कुवलयमाला में' और जिनसेन (द्वि० ) ने हरिवंशपुराण में इनका स्मरण किया है।
रविषेण ने सुधर्माचार्य, प्रभव और कीर्तिधर के अतिरिक्त किसी पूर्वाचार्य या पूर्ववर्ती कृति का उल्लेख नहीं किया है।
इस पद्मचरित पर राजा भोज ( परमार ) के राज्य काल सं० १०८७ में धारानगरी में श्रीचन्द्र मुनि ने एक टिप्पण लिखा है।
रामायण-यह सरल संस्कृत गद्य में लिखी हुई रचना है जो पूर्ववर्ती किसी पद्यात्मक रचना का परिवर्तित रूप है । इसे जैन रामायण भी कहते हैं।
रचयिता एवं रचनाकाल इसकी रचना तपागच्छीय विजयदानसूरि के प्रशिष्य और रामविजय के शिष्य देवविजय ने वि० सं० १६५२ में की थी। इसका संशोधन धर्मसागर गणि के शिष्य पद्मसागर ने किया था। पद्मपुराण नाम की अन्य कृतियाँ (संस्कृत)-१. पद्मपुराण-जिनदास
(१६वीं शती)। ये भट्टारक सकलकीर्ति के शिष्य थे। इसमें उन्होंने रविषेण के पद्मपुराण का अनुसरण किया है । इसका
अपरनाम रामदेवपुराण भी है । २. पद्मपुराण ( रामपुराण )-सोमसेन (सं० १६५६)
-धर्मकीर्ति (सं० १६६९) -चन्द्रकीति भट्टारक -चन्द्रसागर
-श्रीचन्द्र ७. पद्म-महाकाव्य -शुभवर्धन गणि (प्रकाशित-हीरालाल
हंसराज जामनगर, सन् १९१७) ८. रामचरित्र
-पद्मनाभ ९. पद्मपुराण-पंजिका -प्रभाचन्द्र या श्रीचन्द्र १. पृ० ४ (सि. जै० ग्रन्थमाला, ४५). २. सर्ग १.३६. ३. प्रेमी, जैन साहित्य और इतिहास, पृ० २८६-२९०, ४. जि. र० को०, पृ० ३३१. ५. वही, पृ० २३४, ३३१.
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