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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास तिलकमंजरीकथासार : धनपाल के प्रसिद्ध गद्यकाव्य 'तिलकमंजरी' के आधार से अनुष्टुभ् छन्द में 'तिलकमंजरीसार' की रचना हुई है। इसमें १२०० से कुछ अधिक पद्य हैं। इसके रचयिता एक अन्य धनपाल हैं जो अणहिल्लपुर के पल्लीवाल जैन कुल में उत्पन्न हुए थे । उक्त धनपाल ने इसकी रचना कार्तिक सुदी अष्टमी, गुरुवार वि० सं० १२६१ में समाप्त की थी। गद्यचिन्तामणि : __यह द्वितीय गद्य काव्य है। इसके लेखक ने जीवन्धर के लौकिक कथानक को लेकर सरल से सरल संस्कृत पद्यों में क्षत्रचूडामणि जैसे लघु काव्य की सृष्टि की तो अलंकृत गद्यकाव्य शैली में कठिन से कठिन संस्कृत में गद्यचिन्तामणि की। ___ यह गद्य काव्य क्षत्रचूडामणि के समान ही ११ लम्भों में विभक्त है और उसी के अनुसार जीवंधर का चरित इसमें वर्णित है। इसमें विशेषता यह है कि कवि को अपने अप्रतिम कल्पनावैभव, वर्णनपटुता एवं मानवीय भावनाओं के मार्मिक चित्रण का खुलकर अवसर मिला है। इस काव्य में अन्य कलावादी कवियों के समान ही कवि ने शब्दक्रीड़ा-कुतूहल दिखाया है. भावभंगिमाओं के रमणीय चित्रण प्रस्तुत किये हैं तथा सानुप्रासिक समासान्त पदावली एवं विरोधाभास और परिसंख्यालंकार के चमत्कार दिखलाये हैं। गद्यलेखक के रूप में शब्दों की पुनरुक्तता से बचने के लिए कवि ने नये-नये शब्द गढ़े हैं जैसे पृथ्वी के लिए अम्बुधिनेमि, मुनि के लिए यमधन, इन्द्र के लिए बलनिषूदन, सूर्य के लिए नलिनसहचर, चन्द्रमा लिए यामिनीवल्लभ आदि । इस काव्य की रचना में पूर्ववर्ती कवियों का प्रभाव तो परिलक्षित होता है पर उस प्रभाव में वह अन्धानुकरण का दोषी नहीं। सुबन्धु के गद्य काव्य वास. १. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद से सन् १९७० में प्रकाशित. २. वाणी विलास प्रेस, श्रीरंगम्,१९१६; भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी से हिन्दी अनुवाद और संस्कृत टीका सहित पं० पन्नालाल साहित्याचार्य द्वारा ... सम्पादित, वि० सं० २०१५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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