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ललित वाडाय
वर्णित है । इसकी रचना महाकवि कालिदास के कुमारसंभव काव्य से प्रेरणा ग्रहण कर की गयी है ।
इसकी कथावस्तु संक्षेप में इस प्रकार है- अयोध्या के राजा नाभिराय और रानी मरुदेवी के पुत्र ऋषभ का जन्माभिषेक हुआ। वे शैशवावस्था समाप्त कर युवावस्था धारण करते हैं ( १ सर्ग ) । ऋषभ का यश सर्वत्र व्याप्त था । इन्द्र आदि देवों को ऋषभदेव के विवाह की चिंता हुई। महाराज नाभिराय ने भी ऋषभदेव से विवाह का अनुरोध किया ( २ सर्ग ) । अन्य प्रजाजनों ने भी अनुरोध किया । इन अनुरोधों का ऋषभदेव ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया । 'मौनं स्वीकृतिलक्षणं' इस नीति से उनके विवाह की तैयारियाँ की गई' ( ३ सर्ग ) । सुमंगला और सुनंदा को विवाहमंडप में लाया गया । ऋषभदेव को भी विवाहमंडप में उपस्थित किया गया । अप्सराएं नभोमण्डल में नृत्य करने लगीं आदि ( ४ सर्ग ) । ऋषभदेव का सुमंगला और सुनन्दा के साथ पाणिग्रहण सम्पन्न हुआ । चारों ओर जय-जय ध्वनि सुनाई पड़ी। इस सर्ग में पति-पत्नी के संबंधों एवं कर्त्तव्यों का निरूपण है ( ५ सर्ग ) । अनन्तर रात्रि, चन्द्रोदय, षड्ऋतु आदि वर्णनात्मक प्रसंग दिये गये हैं । सर्गान्त में सुमंगला के गर्भाधान का संकेत दिया गया है ( ६ सर्ग ) । एक रात्रि के पिछले पहर में सुमंगला ने चौदह स्वप्न देखे । वह उनका फल जानने के लिए प्रभु के वासगृह में जाती है ( ७ सर्ग ) । ऋषभदेव न े एक-एक स्वप्न का फल बतलाकर कहा कि सुमंगला को चक्रवती पुत्र होगा ( ६ सर्ग ) । भवन में आती है और सखियों को समूचे वृत्तान्त से अवगत कराती है ( १० सर्ग) | आकर सुमंगला के भाग्य की सराहना करता है और उसे बताता है कि अवधि पूर्ण होने पर उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी । उसके पति का वचन मिथ्या नहीं हो सकता। उसके पुत्र के नाम से यह भूमि भारत तथा वाणी 'भारतीय' कहलाएगी । मध्याहून वर्णन के साथ काव्य समाप्त होता है ( ११ सर्ग) |
सुमंगला अपने वास
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यद्यपि कवि कालिदासकृत कुमारसंभव की भाँति जैनकुमारसंभव का उद्देश्य कुमार (भरत) के जन्म का वर्णन करना है किन्तु जिस प्रकार कुमारसंभव के प्रामाणिक अंश ( प्रथम आठ सर्ग) में कार्तिकेय का जन्म वर्णित नहीं
१. जिनरत्नकोश, पृ० ९४, ११४; भीमसी माणेक, बम्बई द्वारा प्रकाशित; जैन पुस्तकोद्धार संस्था, सूरत, १९४६.
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