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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास है वैसे ही जैन कवि के महाकाव्य में भी भरतकुमार के जन्म का उल्लेख कहीं नहीं हुआ है और इस तरह दोनों काव्यों के शीर्षक उनके प्रतिपाद्य विषय के अनुसार चरितार्थ नहीं होते। जैनकुमारसंभव में ६ठे सर्ग में सुमंगला के गर्भाधान का निर्देश करने के पश्चात् भी काव्य को पाँच अतिरिक्त सर्गों में घसीटा गया है। इससे कथाक्रम विशृंखलित हुआ है और काव्य का अन्त अतीव आकस्मिक एवं निराशाजनक ढंग से हुआ है, भले ही वह कवि की वर्णनात्मक प्रकृति के अनुरूप हो । जो हो पर कालिदास का प्रभाव कवि पर बहुत है और वह उसको कृति कुमारसंभव से विशेष रूप से प्रभावित है। कुमारसंभव और जैनकुमारसंभव की परिकल्पना, कथानक के विकास एवं घटनाओं के संयोजन में पर्याप्त साम्य है। इस काव्य की शैली में जो प्रसाद नथा आकर्षण है वह भी कालिदास की शैली की सहजता एवं प्रांजलता के प्रभाव के कारण ही है। यद्यपि इस काव्य की कथा बहुत छोटी है जो ३-४ सर्गों की सामग्री मात्र है परन्तु कवि ने उसे नाना वर्णनों, संवादों, स्तोत्रों तथा प्रशस्तिगानों से भरकर ११ सर्गों की बना दी। इस काव्य की भाषा-शैली उदात्त एवं प्रौढ़ है। कवि ने विभिन्न रसों का चित्रण तो किया है पर प्रधान रूप से किसी एक रस का पल्लवन नहीं किया। इस काव्य में अलंकारों की सुरुचिपूर्ण योजना की गई है। काव्य में चित्रबंध की योजना कहीं नहीं की गई । छन्दों की योजना में कवि ने शास्त्रीय नियमों का पालन किया है। प्रत्येक सर्ग में एक छन्द का प्रयोग हुआ है, सर्गान्त में छन्द बदल दिया गया है । कुल मिलाकर कवि ने १७ छन्दों का प्रयोग किया है । ये सभी सुज्ञात छन्द हैं । कविपरिचय एवं रचनाकाल-इस काव्य के रचयिता कवि जयशेखरसूरि हैं जो अंचलगच्छीय महेन्द्रसूरि के शिष्य थे। जैनकुमारसंभव की प्रशस्ति में इस काव्य का रचनाकाल वि० सं० १४८३ दिया गया है । प्रशस्ति में इनकी अन्य रचनाओं का निर्देश भी किया गया हे : यथा-उपदेशचिन्तामणि' (सं० १४३६), प्रबोधचिन्तामणि' (सं० १४६४), धम्मिलचरित' । १. प्रबोधश्चोपदेशश्च चिन्तामणि कृतोत्तरौ। कुमारसंभवं काव्यं चरितं धम्मिलस्य च ।। २. हीरालाल हंसराज, जामनगर. ३. जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर. ४. हीरालाल हंसराज, जामनगर. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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