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________________ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास है, इसके लिए उसने प्रत्येक सर्ग के छंदों का निर्देश करने के लिए छंदों को पूरे लक्षण के साथ या तो सग के आदि में या स्थान-स्थान पर सूचित किया है। उसने अनेक अप्रसिद्ध छन्दों का प्रयोग किया है और सौभाग्य से उनका नाम निर्देश करके पाठकों का बड़ा उपकार किया है। काव्य के प्रत्येक सर्ग के अन्तिम पद्य में कवि ने अपने नाम का माणिक्य शब्द दिया है और समाप्तिसूचक वाक्य में 'माणिक्या? श्रीश्रीधरचरिते' पद से सूचित किया है कि काव्य 'माणिक्याङ्क' है। इस काव्य में भगवान् पार्श्वनाथ के पूर्वभव के जीव विजयचन्द्र और पट्टरानी सुलोचना का रोचक चरित्र चित्रण किया गया है । यद्यपि काव्य का नाम विजयचन्द्र के सातवे पूर्वभव के जीव श्रीधर के नाम से रखा गया है पर इस कथा का नायक विजयचन्द्र ही है और विजयचन्द्र के साहसिक कार्यों तथा बेराग्य का वर्णन इस काव्य की कथावस्तु है। प्रस्तुत काव्य में इस कथा को निबद्ध करने में कवि ने महाकाव्य के सभी लक्षण अपनाये हैं पर सर्गों की संख्या कम होने से इसे लघुकाव्य कह सकते हैं। इसमें शृंगार, हास्य, अद्भुत, शान्त आदि रसों का वर्णन कवि ने बड़े कौशल के साथ किया है। भाषा प्रसादगुणपूर्ण है। कवि कल्पना करने में बड़ा चतुर है । इस काव्य पर कवि ने स्वयं दुर्गपदव्याख्या लिखो है जिसमें प्रत्येक सग के आदि में छन्दों के सूचक लक्षण दिये गये हैं। कविपरिचय एवं रचनाकाल-ग्रन्थ के अन्त में दी गई प्रशस्ति से शात होता है कि इसके रचयिता माणिक्यसुन्दर हैं जिन्होंने इसे देवकुलपाटकपुर में वि०सं० १४६३ में बनाया और मेरुमण्डल के सत्यपुर में श्री. पूज्य गच्छाधीश से शुद्ध कराया था। उक्त प्रशस्ति से यह भी शात होता है कि अञ्चलगच्छ के मेरुतुंग इनके दीक्षागुरु थे और जयशेखरसूरीश्वर. गुरु थे। इनकी अन्य रचनाओं में चतुष्पर्वी, शुकराजकथा, पृथ्वीचन्द्रचरित्र (प्राचीन गुजराती), गुणवर्मचरित्र, धर्मदत्तकथा, अजापुत्रकथा एवं आवश्यकटीका प्रभृति हैं। जैनकुमारसंभव : प्रस्तुत काव्य ११ सों में विभक है और इसमें भरतकुमार की कथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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