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________________ ५०६ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सन्धियों की योजना का निर्वाह पूर्णतः नहीं हुआ है। इस त्रुटि के अतिरिक्त इस रचना में महाकाव्य के अन्य सभी शास्त्रीय लक्षणों का निर्वाह किया गया है। इसके साथ-साथ उदात्त भाषा-शैली, प्रौढ़ कवित्व-कल्पना, गम्भीर पाण्डित्य, उच्च आदर्श एवं मानव जीवन की विविधता के दर्शन भी इस काव्य में होते हैं। श्रेणिकचरित्र में शास्त्रीय शैली के साथ पौराणिक शैली के भी दर्शन होते हैं। इसमें अन्य पौराणिक महाकाव्यों के समान स्थान-स्थान पर भ. महावीर की देशनाएँ और देशनाओं में भी अगन्तर कथाओं की योजना की गई है। इस काव्य में भवान्तरों के वर्णन द्वारा पूर्वजन्म के पुण्य-पाप का फल उत्तरभव में दिखाया है यथा सेडुक ब्राह्मण जैनधर्मविरुद्ध कार्य से मेंढक होता है और मेंढक भक्तिभावना से देव हो जाता है। कई अतिमानवीय घटनाओं का भी वर्णन इस काव्य में है। इन सब पौराणिक विशेषताओं के रहने पर भी श्रेणिकचरित को हम पौराणिक महाकाव्य नहीं मान सकते क्योंकि इसके प्रत्येक पद्य में कोई न कोई उक्त व्याकरण का सिद्ध प्रयोग अवश्य दिखाया गया है। अतः शास्त्रीयता की ओर अधिक बल होने से इसे शास्त्रीय काव्य मानना चाहिये। ____ इस काव्य की कथावस्तु का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-एक से छठे सर्ग तक राजगृह नगर, श्रेणिक नरेश, उसकी रानियाँ, राजकुमार अभय का वर्णन तथा महावीर का आगमन, उनके दर्शनार्थ लोगों का जाना, समवसरण में अचेना-वन्दना तथा उनकी देशना का वर्णन है। सातवें सर्ग में देशना के समय एक कोढ़ी आकर महावीर की अपने पूय रस से पूजा कर उनसे 'मर जाओ' तथा श्रेणिक से 'जीओ' और अभयकुमार से 'जीओ चाहे मरो' और कालशोकरी कसाई से 'न जीओ न मरो' कहता है। इससे क्रुद्ध होकर श्रेणिक उसे पकड़ने का सैनिकों को आदेश देता है पर वह अन्तर्धान हो जाता है। तब आश्चर्य में पड़कर राजा महावीर से उस कोढ़ी के विषय में पूछता है। आठवें-नौवें-दसवें सर्ग में कोढ़ी सुर के पूर्व भव का वर्णन दिया गया है और उसके वक्तव्यों की व्याख्या दी गई है तथा श्रेणिक के राजभवन लौटने का वर्णन है। ग्यारहवें सर्ग में वही देव श्रेणिक के सम्यक्त्व की परीक्षा करता है और प्रसन्न हो एक गोल्लक और अमूल्य हार का दान करता है। बारहवें सग में कालशौकरी कसाई का मरण और उसके पुत्र सुलस के धार्मिक जीवन का वर्णन दिया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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