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________________ ललित वाङ्मय तेरहवें सर्ग में श्रेणिक द्वारा रानी नन्दा को गोल्लक तथा चेल्लणा को हार देने का वर्णन है । चौदहवें सर्ग में राजा श्रेणिक की दिनचर्या का वर्णन है । पन्द्रहवें सग में हार के टूटने तथा उसके जोड़ने वाले मणिकार का मर कर बन्दर होना और जोड़ने के लिए राजा द्वारा पूरा धन न देने के कारण अवसर पाकर हार की चोरी कर अपने पुत्रों को हार देना वर्णित है । सोलहवें सर्ग में हार की खोज के लिए अभयकुमार को आदेश देने का वर्णन है । सत्रहवें सर्ग में वानर द्वारा हार को लेकर सुस्थिताचार्य मुनि की ध्यानस्थ अवस्था में उनके कण्ठ में डालना तथा अभयकुमार का मुनि के दर्शन के लिए पहुँचना वर्णित है । अठारहवें सर्ग में आचार्य सुस्थित से कुमार द्वारा पिता को सौंपना और कथानक की समाप्ति होना वर्णित है । हार प्राप्त कर अभय ५०७ इस काव्य के प्रत्येक सर्ग के अन्त में आगामी कथा की सूचना भी दी गई है। इस काव्य में अनेक पात्र हैं पर महावीर, श्रेणिक, अभयकुमार और कुष्ठीदेव के चरित्र का ही अधिक विकास हुआ है । यद्यपि इस काव्य में व्याकरण के सिद्ध प्रयोगों की ओर ध्यान विशेष दिया गया है फिर भी यत्र-तत्र कवि ने प्रकृति-चित्रण विविध रूपों में किया है । पर सौन्दर्य-चित्रण इस काव्य में नहीं के बराबर है क्योंकि कवि का व्याकरणस्वरूप विशेष प्रबल है । फिर भी धार्मिक आग्रह की प्रचलता के कारण कवि ने धार्मिक नियमों और सिद्धान्तों का विवेचन खूब किया है । व्याकरण पक्ष को १८ सर्गों में इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है : प्रथम सर्ग में पाँचों संधियाँ तथा कुछ सर्वनाम रूप, द्वितीय सर्ग में शब्द रूप, तृतीय में कुछ सर्वनाम रूप और कारक, चतुर्थ में समास, पंचम में तद्धित, छठे में क्रियाओं के वर्तमानकालिक रूप, सातवें में भूतकालिक रूप, आठ से ग्यारह तक क्रियाओं के विविध सिद्ध रूप और बारहवें से अठारहवें तक कृदन्त के रूपइस तरह कातन्त्र पर उपलब्ध दुर्गवृत्ति के अनुसार व्याकरण के सिद्ध प्रयोगों को प्रदर्शित करने में कवि को पर्याप्त सफलता मिली है । रौद्र, वैसे इस काव्य का प्रधान रस शान्तरस है फिर भी शृंगार, करुण, वीर आदि अन्य रसों का अच्छा परिपाक दिखाया गया है । १. सर्ग ५. १३, १४, १७, ४२, ६३, ७७, ८८-८९; ६.६३, ६४, ८५, १६८, १६९ आदि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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