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________________ ललित वाङ्मय आशाधर थे। पं० आशाघर का समय उनके ग्रन्थों की प्रशस्तियों से सं० १३०० के आसपास का है। आशाधर का अन्तिम ग्रन्थ 'अनगारधर्मामृत' है जिसकी रचना वि० सं० १३०० में समाप्त हुई थी । अर्हद्दास ने १० वें सर्ग के ६४वें पद्य में आशाघर के 'धर्मामृत' पान का उल्लेख किया है तथा भव्य जनकण्ठाभरण के एक पद्य का निर्माण 'सागारधर्मामृत' के एक पद्य के अनुकरण पर किया है । इस सबसे ज्ञात होता है कि वे अवश्य ही आशाधर के निकटकालवर्ती कवि रहे होंगे । अनुमान से उनका समय सं० १३०० के बाद और सं० १३२५ के मध्य कभी रहा होगा । इस काव्य पर एक अच्छी संस्कृत टीका उपलब्ध है । अनुमान है कि कवि की यह स्वोपज्ञ टीका है । श्रेणिकचरित : इस महाकाव्य' का दूसरा नाम दुर्गवृत्तिद्वयाश्रय महाकाव्य है । इस काव्य में श्रेणिकचरित्र के साथ-साथ कातंत्र व्याकरण पर प्राप्त दुर्गसिंहरचित वृत्ति के अनुसार व्याकरण के सिद्ध प्रयोगों को भी प्रदर्शित किया गया है । इसलिए इस महाकाव्य के दो नाम दिये गये हैं । इसमें १८ सर्ग हैं। इसमें प्रत्येक सर्ग का नाम सर्ग में वर्णित घटना के आधार पर रखा गया 1 T इस काव्य के कथानक का क्रमिक विकास लक्षित नहीं होता है । कथानक के प्रारम्भिक ग्यारह सर्गों में जिनेश्वर और उनके उपदेशों की प्रधानता है । ये सर्ग धार्मिक वातावरण से व्याप्त हैं परन्तु बारहवें सर्ग से कथानक की धारा एकदम मुड़ गई है। इन सर्गों में देव द्वारा दिये गये हार के खो जाने और उसकी तत्परता से खोज का वर्णन किया गया है। इसके अन्तिम सात सर्गों के कथानक में धार्मिक वातावरण का अभाव है और लौकिकता की प्रवृत्ति अधिक है । कथानक के इस सहसा मोड़ ने कथा को दो भागों में विभक्त कर दिया है । दोनों में बहुत ही शिथिल सूत्र से सम्बन्ध जोड़ा गया है, इससे काव्य में पंच १. तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी के जैन संस्कृत महाकाव्य, पृ० ३२६. २. भूमिका, पृ० ३. ५०५ जिनरत्नकोश, पृ० १८६ और ३९९; जैन धर्मविद्या प्रसारक वर्ग, पालिताना से केवल प्रथम सात सर्ग प्रकाशित, शेष ग्यारह सर्ग अब तक अप्रकाशित हैं । विशेष परिचय के लिए देखें - डा० श्यामशंकर दीक्षित, तेरहवींचौदहवीं शताब्दी के जैन संस्कृत महाकाव्य, पृ० १२०-१४३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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