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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पर अन्य पौराणिक शैली के महाकाव्यों के विपरीत इसमें अवान्तर और प्रासंगिक कथाओं का अभाव है. साथ ही उपदेशात्मकता या देशनाओं का भी अभाव है। केवल दशम सर्ग में जिनेन्द्रकृत जीवाजीवादि तत्वों के निरूपण का संकेत मात्र किया गया है। इस काव्य में कोमल रसों का ही चित्रण हुआ है इसलिए वीर, रौद्र, वीभत्स और भयानक रसों का नितान्त अभाव है। यह एक वैराग्यमूलक काव्य है इसलिए शान्तरस की प्रधानता है।' यत्र-तत्र हास्य और वात्सल्यरस के दर्शन भी होते हैं। इस काव्य की भाषा प्रौढ़ और सरस है। इसको भाषा का सबसे बड़ा गुण एकरूपता है। इसमें कहीं भी अधिक क्लिष्टता और अव्यवस्था नहीं है। इस काव्य की भाषा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह अलंकारों से सजी है। सम्पूर्ण काव्य में शायद ही कोई पद्य अलंकार से रहित हो। पर अलंकारों का प्रयोग स्वाभाविक रूप से किया गया है, न कि बलात् । शब्दालंकारों में अनुप्रास तथा अर्थालंकारों में उपमा, उत्प्रेक्षा, भ्रान्तिमान् और परिसंख्या का प्रयोग काव्य में बहुत हुआ है। अन्य अलंकारों में रूपक, अर्थान्तरन्यास, अतिशयोक्ति आदि भी द्रष्टव्य हैं। इस काव्य पर एक अच्छी संस्कृत टीका लिखी गई है जिसमें प्रत्येक पद्य के अलंकार सूचित किये गये हैं। इस काव्य के एक सर्ग में एक ही छन्द का और सर्गान्त में विभिन्न छन्दों का प्रयोग किया गया है। प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम में उपजाति छन्द का प्रयोग हुआ है। षष्ठ और दशम में विविध छन्दों का प्रयोग हुआ है। सब मिलाकर १२ छन्दों का प्रयोग हुआ है। कविपरिचय तथा रचनाकाल-कवि ने प्रस्तुत काव्य के अन्त में कोई प्रशस्ति नहीं दी है फिर भी दसवें सर्ग के ६३३ पद्य से इस काव्य के रचयिता का नाम अर्हद्दास ज्ञात होता है। इस काव्य के अतिरिक्त अहंद्दासकृत दो अन्य कृतियाँ मिलती हैं : पुरुदेवचम्पू और भव्यकण्ठाभरण । प्रस्तुत काव्य और उपर्युक्त कृतियों के कुछ पद्यों से ज्ञात होता है कि अर्हद्दास के काव्यगुरु ५० १. सर्ग ८. ३-१, २. ३०.३१. २. सर्ग ५. ३३, ६. ३१; ७. ७. १. 'महदासः सभक्स्युल्लसित', 'महहासोऽयमित्थं जिनपतिचरित' इत्यादि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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