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________________ ५०२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास मुक्तावली' और शाङ्गघर की 'शार्ङ्गधरपद्धति' में उद्धृत किये गये हैं। 'प्रबन्धचिंतामणि' (मेरुतुंग), 'चतुर्विंशतिप्रबन्ध' (जयशेखर), 'वस्तुपालचरित' (जिनहर्ष) और 'पुरातनप्रबन्धसंग्रह' आदि ग्रन्थों में भी वस्तुपाल को सूक्तियाँ मिलती हैं। समकालीन अभिलेखों और काव्यों में वस्तुपाल के कई विरुद मिलते हैं, यथा-सरस्वतीधर्मपुत्र, कविकुंजर, कविचक्रवर्ती, वाग्देवतासुत, कूर्चालसरस्वती, सरस्वतीकण्ठाभरण आदि । वह अनेक कवियों का आश्रयदाता भी था। उसके साहित्यमण्डल में राजपुरोहित सोमेश्वर, हरिहर, नानाकपण्डित, मदन, सुभट, मन्त्री यशोवीर और अरिसिंह थे। अन्य कवि और विद्वान् यथाअमरचन्द्रसूरि, विजयसेनसूरि, उदयप्रभसूरि, नरचन्द्रसूरि, नरेन्द्रप्रभसूरि, बालचन्द्रसूरि, जयसिंहसूरि, माणिक्यचन्द्रसूरि आदि मुनिगण वस्तुपाल के अति सम्पर्क में थे। प्रशस्ति के अनुसार वस्तुपाल का दूसरा नाम वसन्तपाल था। वह अणहिल्लपत्तन के एक शिक्षित कुटुम्ब में उत्पन्न हुआ था। उसके प्रपितामह चण्डप गुजरेश की राजसभा के दरबारी थे। उसके पिता का नाम अश्वराज या आशाराज था तथा माता का नाम कुमारदेवी था। उसने माता-पिता के पुण्यार्थ गिरनार आदि कई तीर्थों की यात्रा की थी। उसके गुरु विजयसेनसूरि थे। प्रस्तुत काव्य का रचनाकाल नहीं दिया गया है। वस्तुपाल ने आदिनाथ के दो मन्दिरों का सं० १२८७ (आबू पर्वत पर) और सं० १२८८ (गिरनार पर) में निर्माण कराया था। इनका उल्लेख इस काव्य में नहीं है। उसने सं० १२७७ में शत्रुक्षय की यात्रा की थी और आदिनाथस्तोत्र रचा था। उसके बाद ही इस काव्य की रचना की गई है। अतः अनुमान होता है कि सं० १२७७ और १२८७ के बीच उसने यह काव्य रचा था। वस्तुपाल का स्वर्गवास माघ कृष्णा ५ सं० १२९६ ( सन् १२४०) में हुआ था।' १. महामात्य वस्तुपाल का साहित्यमण्डल, पृ० ५५. २. वही, पृ० ६०-११६. ३. सर्ग १६.१८. ४. सग १६. १६. ५. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृ० ३९४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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