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________________ ललित वाङ्मय ५०१ इसमें कवि ने पाण्डित्य-प्रदर्शन के लिए शब्दों में खिलवाड़ किया है। कहीं एकाक्षर (ल) श्लोक, कहीं द्वयक्षर ( और र, ल और क), कहीं चतुरक्षर (न, क, त और र), कहीं षडक्षर (श, र, व, य, स, ल) श्लोक और कहीं अंतस्थ अक्षरों का ही प्रयोग किया गया है। इसी तरह किसी श्लोक में दन्त्य, किप्ती में तालव्य, किसी में ओष्ठ्य, किसी में मूर्धन्य, तो किसी में संयुक्ताक्षरों का बहिष्कार किया गया है। महाकवि माघ के शिशुपालवध के समान ही कवि ने इस काव्य के पूरे १४वें सर्ग को चित्रालंकार से चित्रित किया है। इसमें सशर• शरासनबन्ध, गोमूत्रिकाबन्ध, मुरजबन्ध, षोडशदलकमलबन्ध, खड्गबन्ध, सर्वतोभद्र, कविनामाङ्कशक्तिबन्ध आदि की रचना की गई है। इस तरह १४वें सर्ग में शब्दालङ्कारों की भरमार है । इस सर्ग के अतिरिक्त सर्वत्र अर्थालंकार के प्रयोग में कवि ने स्वाभाविकता का ध्यान रखा है। अर्थालंकार में उपमा, उत्प्रेक्षा, अनन्वय, अर्थान्तरन्यास, अतिशयोक्ति, परिसंख्या आदि अलंकारों के सुन्दर उदाहरण इस काव्य में विद्यमान हैं। ___ इस काव्य के प्रत्येक सर्ग में अलग-अलग छन्दों का प्रयोग हुआ है और सर्गान्त में छन्द बदले गये हैं। कुल मिलाकर २१ छन्दों का प्रयोग हुआ है। छठे सर्ग में एक अशातनामा अर्धसम वर्णिक छन्द (न न र य स भ र य) का प्रयोग हुआ है। कविपरिचय और रचनाकाल-काव्य के अन्तिम सर्ग में कवि ने प्रशस्ति में अपना, अपनी वंशपरम्परा और गुरु का परिचय दिया है। तदनुसार इसके रचयिता वस्तुपाल हैं जो घोलका (गुजरात) के राजा वीरधवल तथा उसके पुत्र वीसलदेव के महामात्य थे। ये जैन धर्म और गुजरात के इतिहास में अद्वितीय व्यक्ति हुए हैं। इनके अनेकविध गुणों की प्रशंसा तत्कालीन लेखकों ने खूब की है। ये वीर योद्धा और निपुण राजनीतिश के साथ-साथ स्वयं बड़े विद्वान् कवि और काव्यमर्मज्ञ थे। नरनारायणानन्द के अतिरिक्त शत्रुजयमण्डन, आदिनाथस्तोत्र, गिरिनारमण्डन, नेमिनाथस्तोत्र, अम्बिकास्तोत्र आदि अनेक स्तोत्रों की रचना इन्होंने की थी । इनके द्वारा रचित सुभाषित बल्हण की 'सूक्ति १. सर्ग १४.३, ५, १३, २१, २२, २३, २५, २८, २९, ३३, ४२ भादि. २. सर्ग १४.९,११,१९, १०, २०, ३४. ३. सर्ग .. २३, ११, ३.१, ८.२९, ३७, ११.०, ११, १२.५४, ६६, ०९, १३. २८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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