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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
योजना वर्णित है। बारहवें सर्ग में सुभद्रा का कामदेव की पूजा के लिए रैवतक पर्वत पर जाना तथा अर्जुन द्वारा रथ में बैठा कर उसका अपहरण, बलराम की अर्जुन से युद्ध करने की तैयारी, श्रीकृष्ण द्वारा समझाना वर्णित है। तेरहवें सर्ग में सेनापति सात्यकि की सेना से अर्जुन का युद्ध और चौदहवें सर्ग 'अर्जुनावजन' में बलराम और श्रीकृष्ण द्वारा युद्ध शान्त करना और पन्द्रहवें सर्ग में बलराम द्वारा अर्जुन के साथ सुभद्रा का विवाह वर्णित है।
इस तरह यह काव्य महाभारत के लघुप्रसंग को महाकाव्योचित विधि से विस्तारपूर्वक वर्णित करता है। पर्वत, ऋतु, संध्या आदि वर्णन कथावस्तु के विकास में शिथिलता उत्पन्न करते हैं। कथावस्तु की धारावाहिकता भी इन वर्णनों से विच्छिन्न हुई है। परन्तु कवि ने कुछ प्राचीन काव्यों-शिशुपालवध एवं किरातार्जुनीयम्-को आदर्श बनाकर अपने इस काव्य की रचना की है इसलिए वह इन दोषों का दोषी नहीं है। उन काव्यों में भी ये दोष विद्यमान हैं। उन काव्यों की तरह ही 'नरनारायणानन्द' में भी कथानक गौण और वस्तुव्यापारवर्णन एवं अलंकृत प्रकृतिचित्रण प्रधान हो गया है । ____ इस काव्य के सभी पात्र पौराणिक हैं अतः उनके चरित्र के विकास में पौराणिक रूप की रक्षा की गई है। इसमें श्रीकृष्ण और अर्जुन के चरित्र कुछ विशेष महत्त्व रखते हैं जो आदि से अन्त तक दिखाई देते हैं।
प्रकृतिचित्रण का भव्य रूप इस काव्य में दृष्टिगोचर होता है। विभिन्न सर्ग के सर्ग इस ओर लगे हैं। पात्रों के सौन्दर्य-वर्णन में केवल सुभद्रा का सौन्दर्यचित्र उपस्थित किया गया है, अन्य पात्रों का नहीं।
रस की दृष्टि से इसमें शृंगाररस की प्रधानता है। उसके अनुकूल सुरापान, सुरत, वनक्रीड़ा, पुष्पावचय, दोला एवं जलक्रीड़ा का वर्णन हुआ है। अन्य रसों में रौद्र, वीर और भयानक भी प्रसंग-प्रसंग पर दिखाई पड़ते हैं। इस काव्य में हास्य, करुण और शान्तरस का अभाव है। __ भावानुकूल भाषा, रीति, गुण, अलंकार और छन्दयोजना की दृष्टि से भी यह एक भव्य एवं प्रौढ़ काव्य है। इस काव्य की भाषा भाव और परिस्थिति के अनुसार ही कहीं कोमल, कहीं मधुर और कहीं ओजस्विनी है। इस काव्य की भाषागत विशेषताओं में रूपपरिवर्तन की क्षमता, कान्ति और प्रसादगुणता, चित्रात्मकता और प्रभावोत्पादकता सर्वत्र देखने को मिलती है। इस काव्य में एक सर्ग ( १४वाँ) ऐसा भी है जहाँ भाषा में अतिदुरूहता और कृत्रिमता है।
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