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________________ ललित वाङ्मय ४८९ तरह एकाक्षर, द्वथक्षर, निरोष्ठय, अतालव्य अक्षरों द्वारा पद्यरचना प्रस्तुत की गई है। उपर्युक्त चित्रालंकारों के अतिरिक्त कवि ने विविध अलंकारों की योजना की है जिनमें स्वाभाविकता का ध्यान रखा गया है। शब्दालंकारों में अनुप्रास और यमक का प्रयोग प्रचुर हुआ है और अर्थालंकारों में सादृश्यमूलक अलंकारों, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक और अर्थान्तरन्यास का प्रयोग बहुत हुआ है । छन्दों के प्रयोग में कवि का क्षेत्र व्यापक है। उसने २५ छन्दों का प्रयोग किया है । प्रत्येक सग में एक ही छन्द का प्रयोग कर सर्गान्त में छन्दपरिवर्तन किया गया है । दसर्वे सर्ग में विविध छन्दों का प्रयोग किया है। काव्य में उपजाति, अनुष्टुप् और वंशस्थ का प्रयोग सर्वाधिक हुआ है। कवि ने अपने इस काव्य में यद्यपि पूर्ववर्ती किसी कवि, ग्रन्थकार या ग्रन्थों का उल्लेख नहीं किया है फिर भी इसके निरीक्षण से ज्ञात होता है कि इस पर माघ के शिशुपालवध, वाग्भट के नेमिनिर्वाण तथा वीरनन्दि के चन्द्रप्रभचरित का प्रभाव प्रचुरमात्रा में विद्यमान है। धर्मशर्माभ्युदय के निम्न पद्य नेमिनिर्वाण के निम्न पद्यों से तुलनीय हैं : (१) ४. २९ १. ७० (२) ५.२ २.२ २. ३९ (४) (५) ६. २० ४. २३ (६) ७.१ (७) ३. ५२ ५. ६८ धर्मशर्माभ्युदय के निम्न पद्य चन्द्रप्रभचरित के निम्न पद्यों से तुलनीय हैं : (१) २१.८ १८. २ (२) २१. ९० १८. ७८ (३) २१. ९९ १८.८८ इसी तरह धर्मशर्माभ्युदय के चतुर्थ सर्ग तथा चन्द्रप्रभचरित की दार्शनिक चर्चा के पद्य तुलनीय हैं । ___कविपरिचय और रचनाकाल-काव्य के १९वें सर्ग के अनेक चित्रबन्धों में तथा २१वें सर्ग के अन्तिम पद्य में इसके रचयिता का नाम हरिचन्द्र दिया गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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