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________________ ४८८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास विरक्त होना, दीक्षा, तपस्या, केवलज्ञान, समवसरण का वर्णन है और इक्कीसवें में धर्मदेशना, भ्रमण तथा मोक्षगमन का वर्णन है। ___ कथानक के उपर्युक्त विश्लेषण से ज्ञात हाता है कि कितने छोटे कथानक को लेकर कवि ने महाकाव्य का विस्तृत रूप दिया है। इसमें पहले से छठे सर्ग तक परम्परागत कथा की प्रमुखता है, किन्तु बाद के सर्गों में कथावस्तु को गौण कर अलंकृत वर्णन प्रमुख हो गये हैं। दस से सोलह सर्गों में महाकाव्यीय विषयों का वर्णन हुआ है। सत्रह से बीस सर्गों में पुनः कथावस्तु का क्रम लिया गया है। प्रस्तुत काव्य के कथानक के लघु होने पर भी कवि ने अपने पात्रों का चरित्र-चित्रण अच्छी तरह किया है। इसमें धर्मनाथ, महासेन, सुव्रता, चरणमुनि और सुषेण ये पाँच ही पात्र प्रमुखरूप से दिखाई पड़ते है। इसी तरह प्राकृतिक वर्णन करने में कवि बहुत सफल रहा है। उसका क्षेत्र इस विषय में बहुत व्यापक है।' पात्रों का सौन्दर्य-चित्रण भी कवि ने यथास्थान प्रस्तुत किया है। कवि ने यत्र-तत्र तत्कालीन सामाजिक स्थिति का भी चित्रण किया है। उसने इस काव्य के चौथे और इक्कीसवें सर्ग में जैनधर्म और दर्शन के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन किया है। धर्मशर्माभ्युदय रमणीय भावों और कल्पनाओं का विशाल भण्डार है। इसमें विविध रसों विशेषकर शान्त और शृंगार का अच्छा परिपाक हुआ है। नवम सर्ग में वात्सल्यरस, सत्रहवें में शृंगाररस, उन्नीसवें में वीररस तथा बीसवें में शान्तरस की मार्मिक अभिव्यंजना हुई है। इस काव्य की भाषा अत्यन्त प्रौढ़ और परिमार्जित है। भाषा पर कवि का असाधारण अधिकार दिखाई पड़ता है। भाषा में स्वाभाविकता और सजीवता के दर्शन होते हैं। यथास्थान माधुर्य, ओज और प्रसाद तीनों गुणों का प्रयोग हुआ है पर माधुर्य सम्पूर्ण काव्य में छाया हुआ है। काव्य परम्परा के अनुसार इस काव्य में भी एक सर्ग ( १९वाँ) पाण्डित्यप्रदर्शन और शब्दकोड़ा के लिए रचा गया है। इसमें विविध चित्रकाव्यों की योजना की गई है यथा-गोमूत्रिक, अर्धभ्रम, मुरजबंध, सर्वतोभद्र, षोडशदलकमल तथा चक्रबंध आदि । इसी १. सर्ग २. ७७, ३. २६-२७, ३३-३४, १०. ९, ११.७२; १४. ८, ३९; १६. १८, ४५-४६ भादि. २. सर्ग २. १५, १९, ४. २८ आदि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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