SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 500
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ललित वाङ्मय ४८७ इतनी छोटी कथावस्तु को लेकर सरस, सुन्दर शब्दावली, मनोहर भावों और कल्पना के सहारे एक विशाल काव्य की सृष्टि कवि की विशाल प्रतिभा का ही प्रतिफल है। कथा प्रारम्भ करने के पहले ९ पद्यों द्वारा मंगलाचरण, अपनी लधुता, काव्य का सार-निःसार, सज्जन-दुर्जन निरूपण आदि २२ पद्यों द्वारा करके उत्तर कोशल देश के रत्नपुर नगर का वर्णन है। दूसरे सर्ग में राजा महासेन और रानी सुव्रता की पुत्राभावजन्य चिन्ता तथा वनपाल द्वारा उद्यान में चारण मुनि के आगमन की सूचना पाने का वर्णन है। तीसरे सर्ग में पुरजन-परिजन समेत राजा का मुनिदर्शन के लिए जाना और उनसे अपने विषय में तीर्थकर के पिता होने की भविष्यवाणी सुनना वर्णित है। चौथे सर्ग में राजा के अनुरोध पर मुनि तीर्थकर धर्मनाथ के दो पूर्व भवों का वृत्तान्त सुनाते हैं और सर्वार्थसिद्धि विमान से च्युत होकर महागनी सुव्रता के गर्भ में आने की बात कहते हैं। पाँचवें सर्ग में लक्ष्मी आदि देवियों द्वारा सुव्रता की परिचर्या, सुव्रता द्वारा १६ स्वप्नों का दर्शन तथा गर्भधारण होने पर देवताओं द्वारा पूजा-उत्सव का वर्णन है। छठे से आठवें सर्ग तक जन्मकल्याणक, जन्माभिषेक आदि का वर्णन है। नवे सर्ग में बाल्यकाल से युवावस्था प्राप्त करने तथा स्वयंवर के लिए विदर्भ देश के लिए प्रस्थान तथा मार्ग में प्राप्त गंगा का वर्णन है। दसर्वे' सर्ग में मार्ग में किन्नरेन्द्र की प्रार्थना पर धर्मनाथ का विन्ध्यगिरि में विश्राम तथा वहाँ कुवेर नगरी की रचना आदि का वर्णन है। ग्यारहवें सर्ग में धर्मनाथ की सेवा के लिए उपस्थित छः ऋतुओं का वर्णन है । बारहवें सर्ग में वनसुषमा एवं पुष्पावचय का वर्णन, तेरहवे सर्ग में नर्मदा नदी में जलक्रीड़ा का वर्णन, चौदहवें में संध्या, रात्रि, चन्द्रोदय आदि का वर्णन. पन्द्रहवें में मद्यपान एवं सम्भोग-शृंगार का वर्णन, सोलहवें सर्ग में प्रभात-वर्णन तथा धर्मनाथ का विदर्भ की ओर प्रस्थान, विदर्भ देश का वर्णन तथा विदर्भ नरेश से समागम दिखाया गया है । सत्रहवें सर्ग में स्वयंवर का वर्णन, राजकन्या इन्दुमती द्वारा धर्मनाथ का वरण, विवाह-वर्णन तथा पत्नी सहित स्वदेश लौटना वर्णित है । अठारहवें सर्ग में धर्मनाथ का नगर-प्रवेश, पिता महासेन द्वारा दीक्षाग्रहण तथा धर्मनाथ के राज्याभिषेक का वर्णन है। उन्नीसवें सर्ग में धर्मनाथ के सेनापति सुषेण का विदर्भ में अन्य राजाओं के साथ युद्ध और विजय प्राप्त कर लौटने का वर्णन है। बीसवें सर्ग में धर्मनाथ का उल्कापात देखकर १. दसवें से सोलहवें सर्ग तक माघकृत शिशुपालवध की शैली का प्रभाव स्पष्ट द्रष्टव्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy