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पौराणिक महाकाव्य
भी यहाँ उदात्त दिखाया गया है। रावण धार्मिक और व्रती पुरुष के रूप में अंकित किया गया है। वह सीता का अपहरण तो कर ले गया परन्तु उसने उसकी इच्छा के विरुद्ध बलात्कार करने का विचार या प्रयत्न नहीं किया क्योंकि उसने किसी स्त्री के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध सम्भोग न करने का व्रत ले रखा था। वह सीता को लौटा देना चाहता था पर लोकदृष्टि में डरपोक समझे जाने के भय से ऐसा न कर सका। उसका विचार युद्ध में राग-लक्ष्मण पर विजय प्राप्त करने के बाद वैभव के साथ सीता को वापस करने का था।
पउमचरियं रामचरित के अतिरिक्त अनेक कथाओं का आकर है। इसमें अनेकों अवान्तर कथाएँ दी गई हैं तथा परम्परागत अनेकों कथाओं को यथोचित परिवर्तन के साथ प्रसंगानुकूल बनाया गया है और कुछ नवीन कथाओं की सृष्टि की गई है।
यदि वाल्मीकि रामायण संस्कृत साहित्य का आदि काब्य है तो पउमचरियं प्राकृत साहित्य का । इसकी भाषा महाराष्ट्री प्राकृत है। इसमें देश, नगर, नदी, समुद्र, अटवी, ऋतु, शरीर सौन्दर्य के वर्णन महाकाव्यों के समान हैं। शृङ्गार, वीर और करुण रसों की अच्छी अभिव्यक्ति भी स्थान-स्थान पर हुई है तथा उचित स्थानों पर भयानक, रौद्र, वीभत्स, अद्भुत एवं हास्य रसों के उदाहरण भी मिलते हैं। वर्णन के अनुसार भाषा ओज, माधुर्य और प्रसाद गुणयुक्त होती गई है। उपमादि विविध अलंकारों के प्रयोग भी प्रचुर मात्रा में दिखायी देते हैं तथा गाथा छन्द के अतिरिक्त उद्देशों के मध्य में संस्कृत के छन्द उपजाति, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, मालिनी, वसन्ततिलका, रुचिरा, शार्दूलविक्रीडित आदि का प्राकृत भाषा में प्रयोग किया गया है।
पउमचरियं के अन्तः परीक्षण मे हमें गुप्त-वाकाटक युग की अनेक प्रकार की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सामग्री मिलती है। इसमें वर्णित अनेक जन-जातियों, राज्यों और राजनैतिक घटनाओं का तत्कालीन भारतीय इतिहास से सम्बन्ध स्थापित किया गया है। दक्षिण भारत के कैलकिलों और श्रीपर्वतीयों का उल्लेख है तथा आनन्दवंश और क्षत्रप रुद्रभूति का भी उल्लेख है। उज्जैन और दशपुर राजाओं के बीच संघर्ष, गुप्त राजा कुमारगुप्त और महाक्षत्रपों के बीच संघर्ष की सूचना देता है। इसमें नंद्यावर्तपुर का उल्लेख है जिसका वाकाटकों की राजधानी नन्दिवर्धन से साम्य स्थापित किया जाता है।'
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१. इन आधारों से इसके रचनाकाल का निर्धारण किया गया है।
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