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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ग्रन्थकर्त्ता ने अपने पूर्व स्रोतों को सूचित करते हुए कहा है कि उन्हें यह कथानक 'पूर्व' नामक आगम में कथित एवं नामावलिनिबद्ध तथा आचार्य परम्परागत रूप से मिला था। जिन सूत्रों के आधार से यह ग्रन्थ रचा गया है, उनका निर्देश ग्रन्थ के प्रथम उद्देश में किया गया है फिर भी ग्रन्थ रचना की प्रेरणा में जो स्पष्टीकरण दिया गया है उससे संकेत मिलता है कि लेखक के सम्मुख वाल्मीकि रामायण अवश्य थी और उसी से प्रेरणा पाकर उन्होंने अपने पूर्व साहित्य और गुरु परम्परा से प्राप्त सूत्रों को पल्लवित कर यह ग्रन्थ लिखा । ३६ लेखक के अनुसार इसकी कथावस्तु सात अधिकारों में विभक्त है — स्थिति, वंशोत्पत्ति, प्रस्थान, रण, लवकुशोत्पत्ति, निर्वाण और अनेक भव । कथानक जैन मान्यतानुसार सृष्टि के वर्णन के साथ प्रारंभ होता है और प्रथम २४ उद्देशों में ऋषभादि तीर्थकरों के वर्णन के साथ इक्ष्वाकुवंश, चन्द्रवंश की उत्पत्ति बतलाते हुए विद्याधरवंशों में राक्षसवंश और वानरवंशों का परिचय कराया गया है । राम के जन्म से उनके लंका से लौट कर राज्याभिषेक तक अर्थात् रामायण का मुख्य भाग २५ से ८५ तक के ६१ उद्देश्यों या पर्वों में दिया गया है । ग्रन्थ के शेष भाग में सीता - निर्वासन, लवांगकुश उत्पत्ति, देशविजय व समागम, पूर्वभवों का वर्णन आदि विस्तारपूर्वक देकर अन्त में राम को केवलज्ञान की उत्पत्ति और निर्वाण प्राप्ति के साथ ग्रन्थ समाप्त होता है । रामचरित पर यह एक ऐसी प्रथम जैन रचना है जिसमें यथार्थता के दर्शन और अनेक उटपटांग तथा अतार्किक बातों का निरसन हुआ है। इसमें पात्रों के चरित्र-चित्रण में परिस्थितिवश उदात्त भूमिका प्रस्तुत की गई है और पुरुष तथा स्त्री चरित्र को ऊँचा उठाया गया है। इसमें कैकेयी को ईर्ष्या जैसी दुर्भावना के कलंक से बचाया गया है । दशरथ ने छोड़ वैराग्य धारण करने का विचार किया तभी वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया । कैकेयी के की समस्या आ पड़ी और उसने भरत को भावना से उसे राज्यपद देने के लिए दशरथ से कि दशरथ की आज्ञा से ) वन जाते हैं। राम को वन में जाती है और राम से कहती है कि भरत को राज्य तो तुम्हीं को करना है । अकस्मात् जो मुझसे बन पड़ा उसे मत सोचो, क्षमा कर दो और अयोध्या लौट चलो। इसी तरह बालि और रावण का चरित्र माँगा । सम स्वेच्छा से ( न लौटाने के लिए स्वयं कैकेयी अभी बहुत कुछ सीखना है। Jain Education International वृद्धत्व के कारण जब राज्य गंभीर प्रकृति भरत को भी समक्ष पति एवं पुत्र दोनों के वियोग गृहस्थ जीवन में बाँधे रखने की वर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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