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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास दिया गया है पर कवि के परिचय के लिए कोई प्रशस्ति नहीं दी गई। किन्तु हस्तलिखित प्रतियों में निम्नलिखित एक श्लोक की प्रशस्ति मिलती है जिससे कवि का बहुत थोड़ा परिचय मिल जाता है :
अहिच्छत्रपुरोत्पन्नप्राग्वाटकुलशालिनः ।
छाहडस्य सुतश्चक्रे प्रबन्धं वाग्भटः कविः ।। इससे मालूम होता है कि नेमिनिर्वाण के कर्ता वाग्भट छाहड के पुत्र थे तथा प्राग्वाट या पोरवाड कुल के थे और अहिच्छत्रपुर' में उत्पन्न हुए थे। इन्होंने न तो अपने किसी गुरु आदि का नाम लिखा है और न कोई अन्य परिचय ही दिया है। अपने किसी पूर्ववर्ती कवि या आचार्य का भी कहीं स्मरण नहीं किया है, जिससे इनके समय पर कुछ प्रकाश डाला जा सके। ग्रन्थ के अन्तर्वीक्षण से ज्ञात होता है कि ये वाग्भट दिगम्बर सम्प्रदाय के थे। काव्य के प्रारम्भ के मंगलाचरण में मल्लिनाथ तीर्थकर को इक्ष्वाकुवंशी राजा का सुत (श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुसार सुता नहीं) माना है तथा दूसरे सर्ग में दिगम्बरमान्य १६ स्वप्नों का वर्णन है। इससे उनका दिग० सम्प्रदाय का होना निश्चित है । इस काव्य पर दिग. भट्टारक ज्ञानभूषण की एक पंजिका टीका उपलब्ध है। और कोई टीका प्राप्त नहीं हुई।
इस काव्य पर माघ के शिशुपालवध की स्पष्ट छाया है जो कि छठे सर्ग से १०वें सर्ग तक देखी जा सकती है। काव्य की विषयवस्तु र भद्र के उत्तरपुराण से
१. भारा के जैन सिद्धान्त भवन में सं० १७२७, पौष कृष्णा अष्टमी शुक्रवार
को लिखी प्रति में (जैन हितैषी, भाग १५, अंक ३-४, पृ० ७९); श्रवणवेल्गोल के स्व. पं० दौ• जिनदास शास्त्री के पुस्तकालय में प्राप्त प्रति में (जैन हितैषी, भाग ११, अंक ७-८, पृ० ४८२); गुलालवाड़ी, बम्बई के बीसपंथी जैन मन्दिर के भण्डार में इस काव्य की तीन प्रतियों (नं० २०, ६४, ६५) में जिन्हें स्व० पं० नाथूराम प्रेमी ने देखा था (जैन साहित्य
और इतिहास, पृ० ३२७ पर टिप्पण)। २, अहिच्छत्रपुर उत्तर प्रदेश के जिला बरेली का रामनगर माना जाता है परन्तु
गौ० हीराचन्द्र ओझा के अनुसार नागौर (जोधपुर) का पुराना नाम नागपुर या भहिच्छत्रपुर था। कवि वाग्भट प्रथम का जन्म-स्थान नागौर ही होना चाहिए।
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